फीस, बेडचार्ज और ऑपरेशन में नहीं दवाओं में धुंवाधार लूटते हैं बड़े बड़े प्राइवेट अस्पताल

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 फरीदाबाद: बड़े बड़े अस्पतालों को देखकर गरीब सोचते हैं कि यार यहाँ इलाज कराना तो अपने बस में नहीं है लेकिन कुछ ऐसी बीमारियाँ होती हैं जिनका इलाज बड़े बड़े अस्पतालों में ही हो पाता है जैसे किडनी की बीमारी, दिल की बीमारी, कैंसर की बीमारी। जिला सरकारी अस्पतालों में केवल सर्दी झुखाम और छोटे मोटे बुखार का ही इलाज हो पाता है, जैसे ही किसी मरीज को दिल, जिगर या किडनी की बीमारी होती है उसे बड़े अस्पतालों जैसे AIMS, सफदरजंग या PGI में भेज दिया जाता है। इन अस्पतालों में जाने के बाद मरीज को भले ही सस्ता इलाज मिल जाए लेकिन उन्हें महीनों महीनों धक्के खाने पड़ते हैं और खाने, किराए और आने जाने में सारा पैसा खर्च हो जाता है। 

इन बड़ी बीमारियों का इलाज कराने का दूसरा तरीके है प्राइवेट अस्पताल लेकिन जैसे ही कोई मरीज प्राइवेट अस्पतालों में जाता उसे लूट लिया जाता है, हर तरफ से मरीज को लूटा जाता है, टेस्ट में भी लूटा जाता है, दवाइयों में भी लूटा जाता है। 

फरीदाबाद शहर के एक अस्पताल का उदाहरण देते हैं जहाँ खुलेआम मरीजों को लूटा जाता है, यहाँ पर डॉक्टरों की फीस 500-600 के बीच है, मरीजों को डॉक्टर की फीस देने में कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन जब वे पर्चे पर लिखी दवा लेने अस्पताल के ही मेडिकल स्टोर पर पहुँचते हैं तो उन्हें लूट लिया जाता है। 

अस्पताल में ज्यादातर वही दवाएं रखी जाती हैं जिसपर MRP अधिक लिखा होता है, मतलब मेडिकल स्टोर वालों को दवा 10 रुपये में मिलती है लेकिन पत्ते पर लिखा होता है 100 रुपये, डॉक्टर भी ज्यादातर वही दवाएं लिखते हैं जिनका MRP अधिक होता है और इस सब के लिए डॉक्टर, अस्पताल और मेडिकल स्टोर और दवा की कम्पनियों की मिली भगत होगी है। 

कैसे होता है ये सब

दवा की कम्पनियाँ अपने प्रतिनिधियों को प्राइवेट अस्पतालों में भेजती रहती हैं और ये अस्पतालों में डील करते हैं, उन्हें MR या मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव भी कहा जाता है, ये डॉक्टर या अस्पताल वालों को कहते हैं कि अगर आप यह दवाई लिखेंगे तो आपको इसमें इतना परसेंट कमीशन मिलेगा, वे बताते हैं कि इस दवा के पत्ते पर 2000 रुपये लिखा है लेकिन हम आपको केवल 200 रुपये में देंगे, आप मरीज से 2000 लेंगे तो हम आपको 1800 रुपये कमीशन दे देंगे। इसके बाद डॉक्टर और अस्पताल वाले मरीजों को वही दवा लिखते हैं और मरीज 200 रुपये की दवाई के 2000 रुपये देता है और दिन दहाड़े लुट जाता है, मान लो डॉक्टर ने दिन भर में 100 मरीजों को भी 2000 वाली दवाई लिख दी तो अस्पताल को एक दिन में 1 लाख 80 हजार रुपये की कमाई हो जाती है लेकिन अगर अस्पताल में लूट ना होती तो वही दवाई मरीज को 200 रुपये में मिल जाती। 

अस्पतालों में कैसे होती है लूट

जब मरीज हॉस्पिटल में जाता है तो पहले 500-600 रुपये फीस देकर डॉक्टर से चेक-अप कराता है। उसके बाद डॉक्टर पर्चे पर दवा लिख देता है और वही दवाईयें लिख देता है जिसपर MRP अधिक लिखा होता है। मान लो डॉक्टर ने पांच तरह की दवा लिख दी। मरीज सोचता है कि पता नहीं बाहर दवा मिले या ना मिले, चलो यहीं से दवा ले लेते हैं। उसके बाद मरीज अस्पताल के मेडिकल स्टोर से दवा लेता है तो उसका बिल करीब 3000-4000 हजार रुपये आ जाता है। जबकि यही दवाइयाँ अगर MRP से कम में दी जाएं तो 400-500 रुपये में मिल सकती हैं। मतलब डॉक्टर को 500 रुपये डॉक्टर को फीस देने में नहीं अखरता लेकिन 4000 की दवा लेने में उसके पसीने छूट जाते हैं और उसको यह भी नहीं पता होता कि वह MRF के खल में लुट गया है। अगर आपने कभी सरकारी मेडिकल स्टोर पर दवा खरीदी हो तो आपने देखा होगा, बाहर जो दवाएं 100 रुपये में मिलती हैं वही दवाईयें सरकारी मेडिका स्टोर या सरकारी अस्पताल में 10 रुपये में मिलती हैं।  

इससे भी बड़ी लूट होती है जब मरीज अस्पताल में भर्ती हो जाता है, इसके बाद तो अस्पताल वाले खुलकर लूट मचा देते हैं, ऐसे ऐसे टेस्ट भी करा देते हैं जिसकी जरूरत नहीं है, छोटी सी बीमारी में भी पूरी बॉडी का चेक-अप करा देते हैं। ब्लड टेस्ट, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, सीटी-स्कैन, MRI, अस्पताल में जितने टेस्ट होते हैं सब करा देते हैं। दोनों टाइम टेस्ट होता है, ऊंची MRP वाली दवाएं और इंजेक्शन लिखे जाते हैं, देखते ही देखते मरीज का घर-बार सब बिक जाता है लेकिन हॉस्पिटल वालों को लूटने में शर्म नहीं आती है। अगर अस्पताल में कम MRP वाली दवाइयाँ, इंजेक्शन रखे जाँय और लूट बंद कर दी जाय तो गरीब भी बड़े बड़े अस्पतालों में इलाज करा सकता है। 

प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक उन्होंने 700 दवाइयों के रेट कम करवा दिए हैं लेकिन इससे कुछ नहीं होने वाला क्योंकि वे जिस दवाइयों के रेट कम करवाएंगे प्राइवेट अस्पताल वाले अपने मेडिकल स्टोर पर वो दवाइयाँ रखवायेंगे ही नहीं, लूट पर लगाम लगाने के लिए दवा कंपनियों से MRP का खेल बंद करने के लिए कहना होगा। इसके अलावा सभी प्राइवेट अस्पतालों में मेडिकल स्टोर पर छापा मारकर देखना होगा कि वह कौन सी दवाएं कितने में बेच रहा है।

लूटने से बचने के लिए क्या करें

सबसे पहले तो अस्पताल या मेडिकल स्टोर से बिल ले लें और कार्ड से पेमेंट करें। अगर आप कार्ड से पेमेंट करेंगे तो 50 लुटने के चांसेस कम हो जाएंगे क्योंकि इससे आपके पास दवा खरीदने का सबूत होगा। इसके बाद पक्का बिल ले लें। अगर प्राइवेट अस्पताल वाले ने पक्का बिल देने के बाद भी आपको लूटा है तो आप बिल लेकर कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं इसके बाद प्राइवेट अस्पताल वाले आपको किराया भाड़ा सहित आपका लूटा हुआ पैसा वापस करेंगे और जुरमाना भी देंगे। अगर आप आवाज नहीं उठाएंगे तो आपका कुछ नहीं होने वाला, होशियार रहें और लुटने से बचें। 
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