कालेधन पर लगाम लगने से लाखों पत्रकारों का जीवन संकट में, इनके लिए भी कुछ करे मोदी सरकार: पढ़ें

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New Delhi, 2 Feb: कालेधन पर मोदी सरकार के एक्शन ने लाखों पत्रकारों के जीवन पर संकट खड़ा कर दिया है लेकिन केंद्रीय बजट में देश के पत्रकारों के लिए कोई ऐलान नहीं किया गया, सरकार ने पत्रकारों का जीवन बचाने के लिए कोई ऐलान नहीं किया, ना तो उनके लिए कोई निश्चित सैलरी और ना ही किसी अन्य सुविधा का ऐलान किया, अब लाखों पत्रकारों का बेरोजगार होना तय है, अगर सरकार ने पत्रकरों के लिए जल्द ही कुछ ना किया तो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला यह पिलर कमजोर हो जाएगा और भरभराकर गिर जाएगा।

क्यों आया पत्रकारों के जीवन पर संकट


देश में ख़बरें तो सभी पढना चाहते हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि ख़बरें ढूँढने और बनाने में कितनी मेहनत लगती है, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री मोदी भी पॉजिटिव ख़बरें ढूंढते रहते हैं और मीडिया को पॉजिटिव बनने की सलाह देते हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि अगर मीडिया वाले सिर्फ पॉजिटिव ख़बरें देना शुरू कर देंगे तो उनके पास पैसा कहाँ से आएगा, आप तो कोई मदद करते नहीं हो और ना ही उनके भविष्य के बारे में सोचते है, झूठे ही पत्रकारों को चौथा स्तंभ बना दिया गया है। 

जानकारी के लिए बता दें कि नोटबंदी से पहले सबसे अधिक कालाधन नेताओं के पास था, वे जब चाहते थे अपने काले खजाने से गड्डियां निकालकर पत्रकारों को दे देते थे और उनसे मनचाही ख़बरें लगवा लेते थे, पत्रकार जिस गली से गुजरता था उसे कुछ ना कुछ मिल जाता था, कालेधन वाले अपने पास बेहिसाब धन रखते थे इसलिए उन्हें भी पत्रकारों को गड्डियां देने में कोई तकलीफ नहीं होती थी। यही नहीं बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ मीडिया चैनलों को करोड़ों-अरबों में खरीदकर उनसे मनचाही ख़बरें चलवाती थीं और उन अरबों खरबों रुपयों में से मीडिया चैनल अपने पत्रकरों को सैलरी देते थे। 

नोटबंदी के बाद काला धन स्वाहा हो गया, कई नेताओं ने बदनामी के डर से कालाधन जला दिया लेकिन बैंक में जमा नहीं किया, जिन्होंने बैंक में जमा किया उनका सील हो गया, हो सकता है कि वे जेल भी चले जाँय। कुछ नेताओं ने नोटबंदी के बाद 1000 और 500 के नोट पत्रकारों में बाँट दिए लेकिन वे कितने दिन चलेंगे। अब नेताओं के पास पैसे नहीं हैं, जो पैसे हैं तो बैंक में हैं। चोर नेता इमानदारी से पैसे कमाना जानते नहीं हैं इसलिए अब पता नहीं उन्हें चोरी, दलाली या लूटखोरी करने का मौका मिले या ना मिले। 

अब आप खुद सोचिये, कोई राजनीतिक पार्टी किसी मीडिया चैनल को एक साल के लिए करोड़ों में खरीद लेती थी तो वे मीडिया चैनल साल भर अपने पत्रकारों को सैलरी देते थे लेकिन अब राजनीतिक पार्टियों के कालेधन पर लगाम लग गयी है इसलिए वे मीडिया चैनलों को खरीद नहीं पाएंगे, अब वे चैनल अपने पत्रकारों को नौकरी से निकालना शुरू कर देंगे, इसीलिए दर्जनों मीडिया चैनलों ने नोटबंदी को फेल करने की कोशिश भी की लेकिन नोटबंदी फेल नहीं हो पायी और कालाधन नष्ट हो गया। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नोटबंदी से पहले कालेधन का सबसे बड़ा लाभ मीडिया चैनलों और पत्रकारों को मिलता था, चोर और बेईमान लोग लूटखोरी करके नेता बन जाते थे, पार्षद, विधायक और सांसद बन जाते थे और मीडिया चैनलों और पत्रकारों को पैसे देकर अपनी ख़बरें लगवाते रहते थे लेकिन अब सभी चोरों, बेईमानों और लूटखोरों का कालाधन जब्त कर लिया है इसलिए उन्होंने मीडिया चैनलों और पत्रकरों को पैसे देना बंद कर दिया है। इसलिए लाखों पत्रकारों के जीवन पर संकट पैदा हो गया है। 

क्या करना चाहिए मोदी सरकार को

मोदी सरकार को चाहिए कि तुरंत ही जर्नलिस्ट वेलफेयर फंड बनायें और उसमें से पत्रकारों को कम से कम 20 हजार प्रति महीना सैलरी दें, इस कैटेगरी में न्यूज पोर्टल वाले पत्रकरों को भी शामिल किया जाए क्योंकि ज्यादातर पॉजिटिव ख़बरें वही चलाते हैं, हाँ अगर कोई गलत खबर दिखाता पकड़ा जाए, बिकाऊ खबर दिखाता पकड़ा जाए तो उसे सैलरी ना दी जाए और ना ही कोई लाभ दिया जाए, अगर वह सुधर जाता है तो उसे फिर से पैसे दिए जाएं। किसी मीडिया संस्थान से 3 लाख सालाना सैलरी पाने वाले पत्रकारों को इसमें शामिल ना किया जाए। इसके अलावा पत्रकारों को सभी बसों और ट्रेनों में निःशुल्क यात्रा करने की सुविधा भी मिलनी चाहिए। 

मीडिया में आएगा सुधार, शुरू होंगी पॉजिटिव ख़बरें

अगर मोदी सरकार ये काम करती है तो इससे मीडिया में भी सुधार आएगा, पॉजिटिव ख़बरें अधिक छपेंगी, देश में सकारात्मक माहौल बनेगा। इस समय मीडिया को नकारात्मक ख़बरें छापने के लिए अधिक पैसे मिलते हैं इसलिए मीडिया के लोग पॉजिटिव ख़बरें छपने से कतराते हैं। 
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