क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो का निधन

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हवाना, 26 नवंबर: क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो नहीं रहे। 90 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। देश के सरकारी टीवी ने शनिवार को उनके निधन की घोषणा की। उनके निधन के साथ ही क्यूबा और लैटिन अमेरिका में एक युग का अंत हो गया। क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ने कहा, "क्यूबाई क्रांति के कमांडर-इन-चीफ ने (स्थानीय समयानुसार) शुक्रवार रात 10.29 बजे अंतिम सांस ली।"

क्यूबा के राष्ट्रपति ने सरकारी टेलीविजन पर देर रात एक अप्रत्याशित प्रसारण में राष्ट्र को फिदेल कास्त्रो के निधन के बारे में बताया। उनका अंतिम संस्कार स्थानीय समयानुसार शनिवार को किया जा रहा है।

फिदेल कास्त्रो के निधन के बाद इस द्वीपीय देश में कई दिनों तक राष्ट्रीय शोक रहेगा।

राउल कास्त्रो ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन का अंत क्रांतिकारी नारा, 'जीत की ओर, हमेशा!' के साथ किया।

फिदेल कास्त्रो ने कुछ समय पहले ही राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया था। हालांकि इस बीच वह समय-समय पर समाचार-पत्र में स्तंभ लिखते रहे।

क्रांतिकारी आइकन के तौर पर मशहूर दुनिया के सर्वाधिक चर्चित व विवादास्पद नेताओं में से एक कास्त्रो अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनी हत्या के कई प्रयासों से बचने में कामयाब रहे थे। उनके निधन की कई खबरें बीच-बीच में आती रहीं, जो अक्सर उनके वीडियो और कभी उनकी सार्वजनिक उपस्थिति के बाद निराधार साबित होती रहीं। लेकिन लंबी बीमारी और 90 साल की उम्र में अंतत: वह इस दुनिया को अलविदा कह गए।

क्यूबा के राष्ट्रपति रह चुके कम्युनिस्ट क्रांतिकारी कास्त्रो ने क्यूबा में एक-दलीय व्यस्था के तहत लगभग आधी सदी तक शासन किया और बाद में साल 2008 में सत्ता अपने भाई राउल कास्त्रो को सौंप दी।

कास्त्रो के समर्थक उन्हें एक ऐसा शख्स बताते हैं, जिन्होंने क्यूबा को वापस यहां के लोगों के हाथों में सौंप दिया। लेकिन विरोधी उन पर लगातार विपक्ष को बर्बरतापूर्वक कुचलने का आरोप लगाते रहे।

कास्त्रो ने अप्रैल में देश की कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस को अंतिम दिन संबोधित किया था। उन्होंने माना था कि उनकी उम्र बढ़ रही है, लेकिन उन्होंने कहा था कि कम्युनिस्ट अवधारणा आज भी वैध है और क्यूबा के लोग 'विजयी होंगे।'

उन्होंने अपने संबोधन में कहा था, "मैं जल्द ही 90 साल का हो जाऊंगा, जिसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी। जल्द ही मैं अन्य लोगों की तरह हो जाऊंगा, लेकिन हम सभी की बारी जरूर आनी चाहिए।"

कास्त्रो का जन्म 1926 में क्यूबा के दक्षिण-पूर्वी ओरिएंट प्रांत में हुआ था। उन्हें अमेरिका समर्थित बतीस्ता प्रशासन के खिलाफ असफल विद्रोह की अगुवाई करने के लिए 1953 में कैद कर लिया गया था, लेकिन बाद में 1955 में मानवता के आधार पर रिहा कर दिया गया।

कास्त्रो को क्यूबा की राष्ट्रीय एसेम्बली ने 1976 में राष्ट्रपति चुना था। वर्ष 1992 में क्यूबाई शरणार्थियों को लेकर अमेरिका के साथ उनका एक समझौता हुआ।

वर्ष 2008 में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से स्वेच्छा से क्यूबा के राष्ट्रपति पद का त्याग कर दिया।

जंग-ए-मैदान के माहिर खिलाड़ी कास्त्रो और उनकी छोटी-सी गुरिल्ला सेना ने 1959 में सैन्य तानाशाह फुलखेंशियो बतीस्ता का तख्ता पलट कर दिया था, जिसके लिए उन्हें देश में व्यापक समर्थन प्राप्त था।

सत्ता संभालने के दो साल के भीतर उन्होंने क्रांति को मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी प्रकृति का घोषित किया और सोवियत संघ के साथ इस द्वीपय देश के संबंध को मजबूती से जोड़ा।

अमेरिकी आक्रमण के लगातार खतरे और दीर्घकालिक आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद वह इस द्वीपीय देश में कम्युनिस्ट क्रांति को बरकरार रखने में कामयाब रहे, जो अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा के तट से महज 90 मील दूर है।

विरोधी जहां उनकी आलोचना करते रहे, वहीं प्रशंसकों ने हमेशा उन्हें प्यार व सम्मान दिया। उन्होंने जितनी अवधि तक क्यूबा में अकेले शासन किया, उस दौरान अमेरिका में 10 राष्ट्रपति हुए। उन्होंने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनी हत्या के कई प्रयासों को नाकाम किया।
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