3 तलाक और हलाला से परेशान मुस्लिम महिलायें बोलीं ‘मोदी पहले PM, जिन्होंने हमारे दर्द को समझा’

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नई दिल्ली, 9 अक्टूबर: मुस्लिम महिलाओं के एक समूह ने रविवार को 'तीन तलाक' पर प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी सरकार के रुख का स्वागत किया, केंद्र सरकार ने कहा है कि तीन तलाक महिलाओं के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है और यह प्रथा समाप्त होनी चाहिए। 16 महिला कार्यकर्ताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा, "हम सर्वोच्च न्यायालय में मोदी सरकार के रुख का तह-ए-दिल से स्वागत करते हैं, कई महिलाओं ने यह कहा है कि मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने उनके दर्द को समझा है और इस समस्या से निजात दिलाने के लिए पहल की है।"

उन्होंने कहा, "हम (सरकारी) हलफनामे के स्पष्ट बयान का स्वागत करते हैं कि तीन तलाक, निकाह, हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाएं महिलाओं की समानता और गरिमा का उल्लंघन करती हैं और इसलिए इन्हें समाप्त किया जाना जरूरी है।"

बयान के मुताबिक, तील तलाक कुरान की हिदायतों और भारतीय संविधान में निहित न्याय और समानता के मूल्यों का उल्लंघन है।

बयान के मुताबिक, "हम इस बयान का भी स्वागत करते हैं कि लैंगिक समानता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता.. लैंगिक समानता और न्याय के बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती।" 

बयान के मुताबिक, संविधान हमारे देश में विविधता और बहुलवाद को कायम रखने के उद्देश्य से निजी कानूनों की अनुमति देता है। लेकिन यह कहीं भी लैंगिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन की अनुमति नहीं देता।

महिलाओं ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को भी उसी प्रकार कानूनी न्याय का अधिकार है, जिस प्रकार हिंदू महिलाओं को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के माध्यम से न्याय मिला है।

बयान में कहा गया है, "शरीयत अनुप्रयोग अधिनियम, 1937 अधूरा है और पुरातन है। हम इसमें तत्काल सुधार की मांग करते हैं, ताकि मुस्लिम महिलाएं न्याय और सम्मान की जिंदगी जी सकें।" 

बयान पर हस्ताक्षर करने वाली महिलाओं में आफरीन बानो, बदर सैयद, फरहत अमीन, खातून शेख, एम. नसरीन, मारिया सलीम, नसीम अख्तर, निशात हुसैन, नूरजहां साफिया नियाज, आर. जेबुन्निसा, राहिमा खातून, साफिया अख्तर, शादाब बानो, शरीफा खानम, शायरा बानो और भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक और सर्वोच्च न्यायालय की एक याचिकाकर्ता जाकिया सोमन शामिल हैं।
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