मोदी के विदेश दौरों की प्लानिंग सुनकर आप दंग रह जाएँगे

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15 July, 2015: किसी भी देश के प्रधानमंत्री का काम होता है कि वो देश के साथ साथ विदेशों में भी अच्छे सम्बंध बनाये ताकि दुसरे देश मुसीबत के समय हमारी मदद कर सकें। विदेशों का दौरा करने से पहले इस बात का खाका तैयार करना होता है कि कौन सा देश हमारे लिए किस लिहाज से महत्वपूर्ण है। दौरे के साथ साथ ये भी देखना होता है कि प्रधानमंत्री के विदेश दौरों पर अधिक खर्चा भी ना हो। मोदी ने अब तक जितने भी विदेश दौरे किये हैं एक बेहतर और सोची समझी प्लानिंग के तहत किये हैं और अपने हर एक दौरे में एक साथ कई देशों का दौरा किया है। बहुत सारे लोग कहते हैं कि विदेश दौरा करने की जरूरत क्या है। वे इतना जान लें कि जैसे आप अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाते रहते हैं तो वे मुसीबत में काम आते हैं उसी तरह विदेशों का दौरा करने से और उनके साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने से वे मुसीबत में हमारे काम आ सकते हैं।

कितना खर्च आता है विदेश दौरों पर

प्रधानमंत्री का विदेश दौरा बहुत ही मुश्किलों भरा होता है। दौरे से पहले गुप्तचर विभाग को भेजकर खतरे का पता लगाया जाता है। गुप्तचर विभाग के कई अफसर प्रधानमंत्री के दौरे से कई दिन पहले विदेशों में पहुंचकर निगरानी शुरू कर देते हैं ताकि प्रधानमंत्री की जान का कोई खतरा ना हो। दौरे में प्रधानमंत्री के साथ साथ कई तरह की टीमें होती हैं जिसमे मान्यता प्राप्त पत्रकारों के साथ साथ, बिजनेस मैन, सिक्योरिटी सलाहकार, कमांडोज और प्रधानमंत्री ऑफिस से कई लोग होते हैं। प्रधानमंत्री हमेशा विशेष विमान से ही दौरा करते हैं जिसमे सुरक्षा के साथ साथ सोने, बैठने, चिकित्सा और अन्य कई तरह की सुविधाएँ मौजूद होती हैं। सभी तरह के प्रबंधन करने में करोड़ों रुपये का खर्चा आता है।

मोदी की चालाकी: एक पंथ कई काज

विदेश दौरों पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी हमेशा रास्ते में पड़ने वाले दुसरे देशों का भी दौरा कर लेते हैं। इस सब की प्लानिंग मोदी की टीम पहले से ही कर लेती है। मोदी का पिछला रूस दौरा इस बात का जीता जागता उदाहरण है। मोदी को BRICS और SCO सम्मलेन में भाग लेने के लिए रूस के उफा शहर में जाना था। ये मीटिंग कई महीने पहले से ही तय थी और इसमें भाग लेना भी जरूरी था। मतलब मोदी का इस मीटिंग में जाना 100 फीसदी तय था। नई दिल्ली ने उफा की दूरी करीब 4500 किलोमीटर है। अगर मोदी चाहते तो नई दिल्ली से सीधा रूस (उफा) जाते और वहां से BRICS में भाग लेकर सीधा वापस नई दिल्ली आ जाते। लेकिन मोदी ने ऐसा नहीं किया। इस रास्ते में पांच देश पड़ते हैं – उज्बेकिस्तान, कजाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान। अगर मोदी चाहते तो रूस से सीधा वापस जाते और दूसरी बार नई दिल्ली से उज्बेकिस्तान जाते। फिर वापस आ जाते और तीसरी बाद नई दिल्ली से कजाखस्तान जाते। फिर वापस आ जाते और चौथी बार नई दिल्ली ने तुर्कमेनिस्तान जाते। फिर वापस आ जाते और पांचवीं बार नई दिल्ली से किर्गिस्तान जाते। फिर वापस आ जाते और छठी बार नई दिल्ली से ताजिकिस्तान जाते।

मोदी ने क्या किया

मोदी को BRICS में भाग लेने जाना था। उन्होंने रास्ते में पड़ने वाले पांच और देशों का दौरा करने की योजना बना ली ताकि बाद में फिर से इन देशों का दौरा ना करना पड़े और विदेश दौरों के खर्च को कम किया जा सके। उन्होंने जाते समय उज्बेकिस्तान और कजाखस्तान का दौरा कर लिया और वापसी में तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान का दौरा कर लिया। इस तरह एक ही रास्ते में एक काम करने के साथ साथ पांच काम और हो गए।

क्या मिला विदेश दौरे से

मोदी के पिछले विदेश दौरे से कई फायदे हुए। भारत को SCO की सदस्यता मिल गयी। यह संगठन सुरक्षा और मादक पदार्थों की तस्करी को ख़त्म करने के लिए बनाया गया है। इसके अलावा भारत के उज्बेकिस्तान, कजाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ अच्छे सम्बन्ध बन गए। भारत इन देशों के साथ मिलकर आतंकवाद से लड़ने के साथ साथ आपस में रक्षा और सुरक्षा सहयोग एवं व्यापार के क्षेत्र में संबंधों को मजबूत करेगा। साथ ही साथ चीन की दक्षिण एशिया में दादागिरी ख़त्म होगी।

अगले दौरे में भी एक पंथ तीन काज

मोदी अपने अगले दौरे में भी तीन पडोसी देशों इजराएल, फिलिस्तीन और तुर्की देश का दौरा करने वाले हैं। मोदी का इजराएल दौरा काफी दिनों पहले से तय था लेकिन पड़ोस में लगे फिलिस्तीन और तुर्की देशों का दौरा करने से फिर से इन देशीं का दौरा करने से बचा जा सकेगा और समय के साथ साथ खर्चा भी बचेगा।
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