समय समय की बात है जब 200 रुपये में थी दाल तो भैंसे, मुर्गे और बकरे से भी स्वादिष्ट लगती थी?

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नई दिल्ली, 28 मार्च: उत्तर प्रदेश में जब से अवैध बूचडखानों पर कार्यवाही शुरू हुई है भैंसे के गोस्त की कमी हो गयी है, अब मुसलामानों को भैंसे का गोस्त खाने को नहीं मिल रहा है तो यह बहुत स्वादिष्ट लगने लगा है, मीडिया के लोग भी टुंडे कबाब ना मिलने का रोना रो रहे हैं, मीडिया वालों को भी टुंडे कबाब बहुत स्वादिष्ट लगने लगा है। 
वैसे आपको बता दें, लोगों को जो चीजें नहीं मिलती वही स्वादिष्ट लगने लगती हैं, अगर आपको याद हो, जब दाल की कीमतें 200 रुपये तक पहुंची थीं तो यही दालें लोगों को टुंडे कबाब, भैंसे, मुर्गे और बकरे के गोस्त से भी अधिक स्वादिष्ट लगती थीं, जिस पार्टी में दाल परोसी जाती थी तो लोग भैंसे, बकरे और मुर्गे को छोड़कर दाल पर टूट पड़ते थे लेकिन जब से दाल की कीमतें मोदी सरकार ने 70 रुपये कर दी हैं लोगों को फिर से भैंसा, बकरा और मुर्गा स्वादिष्ट लगने लगा है। 

जब से दाल की कीमतें 70 रुपये हुई हैं, ना तो दालें किसी को स्वादिस्ट लग रही हैं, ना ही मीडिया में इसकी चर्चा हो रही है, जब दाल की कीमतें 200 रुपये हुई थीं तो यही मीडिया के लोग कहते थे कि दाल गरीबों का भोजन है, दाल में प्रोटीन मिलता है, मोदी सरकार ने दाल रूपए में कर दी है, हाय हाय हाय हाय। 

अब दाल की कीमतें गिर गयी हैं, हर गरीब को दाल मिल रही है तो मीडिया वालों ने टुंडे कबाबी का रोना शुरू कर दिया है, अब भैंसा इन्हें अधिक स्वादिस्ट लगने लगा है। पहले एक हफ्ते दाल नहीं मिलती थी, जो लोग रोजाना मीट-मुर्गा खाते थे उनकी जीभ दाल के लिए मचलने लगती थी, अब रोजाना दाल मिल रही है तो लोगों की जीभ मीट-मुर्गे के लिए मचल रहे है, मतलब जीभ में ही दोष है, इसको जो चीजें नहीं मिलती उसके लिए मचलने लगती है, जीभ को जो चीजें नहीं मिलती उसी के लिए ये मचलने लगती है।

कहने का मतलब ये है कि जरूरी नहीं है कि मीट, मुर्गा या भैंसा ही लोगों को स्वादिष्ट लगता है, दाल उससे भी अधिक स्वादिस्ट लग सकती है जब इसकी कीमतें भैंसे, बकरे और मुर्गे से अधिक कर दी जाय। 
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