नोटबंदी का विरोध करने के बाद भी मुंबई में क्यों आगे रही शिवसेना, पढ़कर हैरान रह जाएंगे आप

Hardik Patel was Shivsena game plan in BMC Election 2017
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मुंबई: आपने देखा होगा कि कांग्रेस हमेशा से ही नोटबंदी का विरोध कर रही है, सभी चुनावों में नोटबंदी को मुद्दा बना रही है, इसका परिणाम यह हो रहा है कि कांग्रेस सभी चुनाव हार रही है, कांग्रेस नोटबंदी का जितना अधिक विरोध करती है उतनी ही बुरी तरह हारती है, अब आप खुद देखिये कल महाराष्ट्र निकाल चुनाव के नतीजे आये तो कांग्रेस हर जगह से साफ हो गयी। 10 निकायों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया। 

कांग्रेस की तरह ही शिवसेना ने भी नोटबंदी का विरोध किया था, चुनाव प्रचार में शिवसेना और उसके अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने नोटबंदी को मुख्य मुद्दा बनाया था और मोदी के खिलाफ जमकर जहर उगला था उसके बावजूद भी शिवसेना मुंबई में सबसे अधिक सीटें जीत गयी। आइये बताते हैं कि शिवसेना की जीत के पीछे क्या कारण था। 

सबसे पहले तो जान लीजिये कि शिवसेना एक क्षेत्रीय पार्टी है और राज्यवाद की राजनीति करती है, यानी मराठी मानुष की राजनीति करती है। शिवसेना की जीत का सबसे बड़ा कारण यह था कि उन्हें कट्टर मराठियों का वोट मिला। उदाहरण के लिए थाणे में शिवसेना की जीत इसलिए हुई क्योंकि वहां पर मराठा वोटर सबसे अधिक थे। शिवसेना कुल 131 सीटों वाले ठाणे नगर निगम पर पहले भी शिवसेना का ही कब्ज़ा था और इस बार भी शिवसेना की ही जीत हुई। यहाँ पर बीजेपी को सिर्फ 23 सीटें मिलीं जबकि एनसीपी को 34 सीटें मिलीं। बीजेपी को सबसे कम सीटें मिलता इस बात का सबूत है कि यहाँ पर मराठा पॉलिटिक्स हावी रही और इन लोगों ने नोटबंदी को नहीं देखा। पर महाराष्ट्रियन हिंदुओं की जनसँख्या करीब 80 फ़ीसदी है जबकि 17 फ़ीसदी मुस्लिम हैं। मुस्लिम 17 फ़ीसदी हैं इसलिए तीन सीटें असद्दुदीन की पार्टी AIMIM ने भी जीत लीं। 

अब आइये, मुंबई की बात करते हैं, यहाँ पर सभी धर्मों, सभी जातियों और सभी राज्यों के लोग रहते हैं लेकिन यहं पर महाराष्ट्रियन हिंदुओं यानी मराठा मानुषों की जनसँख्या 42 फ़ीसदी है जबकि गुजराती हिंदुओं की जनसँख्या 19 फ़ीसदी है इसके अलावा 20 फ़ीसदी मुस्लिम हैं।

यहाँ पर मराठा लोगों की जनसँख्या भले ही 42 फ़ीसदी है लेकिन ये लोग बड़े शहर में रहने के कारण कट्टर मराठी या क्षेत्रवादी नहीं हैं, वैसे भी बड़े शहरों में रहने वाले लोग क्षेत्रवाद नहीं देखते हैं। इसलिए यहाँ पर मराठा लोगों ने बीजेपी को भी वोट दिया और शिवसेना को भी वोट दिया। 

शिवसेना के लिए मुम्बई में जीत के सबसे बड़े फैक्टर बनें हार्दिक पटेल जिन्हें शिवसेना ने चुनाव से ठीक पहले गुजरात में शिवसेना का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना दिया जबकि उनकी ना उम्र है और ना ही कोई अनुभव। शिवसेना ने ऐसा करके बहुत बड़ा राजनीतिक गेम खेल दिया। 

हार्दिक पटेल के पीछे शिवसेना का गेम प्लान

हार्दिक पटेल को सोची समझी रणनीति के तहत शिवसेना में लाया गया है, गुजरात में पटेलों की जनसँख्या 15 फ़ीसदी है यानी करीब 1 करोड़। मुम्बई में 19 फ़ीसदी गुजराती आकर बस गए हैं यानी करीब 20 लाख गुजराती रहते हैं जिनमें से करीब 30 फ़ीसदी यानी 6 लाख पटेल हैं। इन्हीं 6 लाख पटेलों का वोट पाने के लिए हार्दिक पटेल को शिवसेना में लाया गया था और इसका लाभ भी मिला। गुजरात के पटेल पिछले कुछ समय से एंटी बीजेपी हो गए हैं और केवल बीजेपी को हारने वालों को वोट दे रहे हैं, मुंबई में भी पटेलों का वोट शिवसेना की जीत के लिए तुरुफ का इक्का साबित हुआ। अगर शिवसेना ने ऐसा ना किया होता तो शायद शिवसेना को मुम्बई में विपक्ष में बैठना पड़ता। 

अगर ऐसा नहीं है तो आप खुद सोचिये, पाटीदार की राजनीति करने वाले हार्दिक पटेल को अचानक शिवसेना में क्यों लाया गया, उन्हें गुजरात में मुख्यमंत्री उम्मीदवार क्यों बनाया गया, जो शिवसेना महाराष्ट्र में कई जगह खाते भी नहीं खोल पाई वो गुजरात में चुनाव कैसे जीत सकती है और हार्दिक पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री कैसे बना सकती है। यह सब केवल मुंबई में पटेलों का वोट लेने के लिए किया गया था और इस फैक्टर ने काम भी किया। 
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