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शीला दीक्षित का बयान सुनाकर अमित शाह ने राहुल गाँधी का बना दिया मजाक, उड़वा दी हंसी: पढ़ें

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आजमगढ़: आज भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का बजाक बना दिया और उनकी हंसी उड़वा दी, इसके लिए उन्होंने कांग्रेस की नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बयान का सहारा लिया। अमित शाह ने कहा कि आपने सुना होगा, कांग्रेस ने शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था लेकिन अब उन्हें गायब करके सपा के साथ गठबंधन कर लिया।

अमित शाह ने बताया कि आज मैंने शीला दीक्षित का टाइम्स ऑफ़ इंडिया में बयान पढ़ा जिसमें उन्होंने कहा है कि राहुल गाँधी अभी Mature यानी समझदार नहीं हैं, उन्हें समझदार होने में थोड़ा समय दीजिये।

अमति शाह ने कहा - शीला जी, आपकी बात तो पूरा देश जानता है लेकिन वे Mature यानी समझदार नहीं हैं तो आप उन्हें उत्तर प्रदेश में क्यों थोप रही हैं। ये मैं नहीं कह रहा हूँ, ये शीला दीक्षित ने कहा है कि राहुल गाँधी अभी समझदार नहीं हैं। 

अमित शाह ने कहा - ये उत्तर प्रदेश की धरती कोई प्रयोग भूमि है क्या? क्या यहाँ पर सीखने के लिए किसी को भेजना है, अरे उत्तर प्रदेश तो समस्याओं का दरिया है, इन समस्याओं का समाधान करने के लिए कलेजा चाहिए, इन दोनों शहजादों के पास कलेजा नहीं है, ये उत्तर प्रदेश की समस्या का समाधान नहीं कर सकते, उत्तर प्रदेश की समस्या का समाधान नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार ही कर सकती है।

अमित शाह ने कहा कि ये दोनों शहजादे ऐसे हैं, एक से तो उसकी माँ परेशान है और दूसरे से उसका बाप परेशान है और दोनों से पूरा उत्तर प्रदेश परेशान है।

हम रमजान व दिवाली में भेद नहीं करते: अखिलेश यादव

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फैजाबाद, 24 फरवरी: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि समाजवादी लोग रमजान और दिवाली में भेद नहीं करते। हम विकास की बात करते हैं और भाजपा वाले श्मशान व कब्रिस्तान की बात कर रहे हैं। फैजाबाद में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए अखिलेश ने कहा कि मोदी गंगा और सरयू नदी की कसम खाकर बताएं कि वाराणसी को 24 घंटे बिजली मिल रही है या नहीं?

अखिलेश ने जनसभा में उड़ी भीड़ से कहा, "हम उप्र में सरकार बनाना चाहते हैं, इसलिए हम आप लोगों से अपील करने आए हैं कि यहां के प्रत्याशी को जिताएं।"

उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर हमला करते हुए अखिलेश ने कहा, "बुआ से सावधान रहना, क्योंकि वह तीन बार भाजपा के साथ मिलकर रक्षाबंधन मना चुकी हैं।"

अखिलेश ने मायावती पर लोकसभा चुनाव में अपना वोट भाजपा को स्थानांतरित करा देने का भी आरोप लगाया।

मुख्यमंत्री ने कहा, "बसपा में बिना पैसे के टिकट नहीं मिलता। उस पार्टी से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं?"

कांग्रेस के साथ गठबंधन पर उन्होंने कहा, "अब साइकिल के हैंडल पर हाथ आ गया है तो उप्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने जा रही है।"

नोटबंदी के बाद बड़ी ताकतें झूठ फैलाने में लगी हैं लेकिन लोग तीसरी आंख से सच देख रहे हैं: MODI

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गोंडा: प्रधानमंत्री मोदी ने आज उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में एक बड़ी चुनावी रैली को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद देश की बड़ी बड़ी ताकतें झूठ फैलाने और लोगों को भ्रमित करने में लगी हैं लेकिन हिंदुस्तान के लोग भगवान शिव की तरह तीसरी आँख से सच देख रहे हैं। 

मोदी ने कहा कि हमारे देश के सामान्य व्यक्ति चाहे वो पढ़े लिखें हो या ना हो, स्कूल का दरवाजा झांका हो या ना हो, अखबार पढ़ते हों या ना पढ़ते हों लेकिन भगवान शिव की तरह हिंदुस्तान के लोगों में एक तीसरा नेत्र होता है और उस तीसरे नेत्र से वो भली भाँती परख लेते हैं कि सच क्या है, झूठ क्या है, सही क्या है गलत क्या है, कौन सा रास्ता सही है कौन सा रास्ता है।

मोदी ने कहा कि हमारे देश में झूठ मूठ आरोप लगाने वालों की कमी नहीं है, अनाप शनाप बयानबाजी करने वालों की कमी नहीं है, हर दिन नया झूठ बोलने में माहिर लोगों की कमी नहीं है, झूठ फैलाने का भरपूर प्रयास होता है और अगर उस झूठ को सुनें, रोज चल रही बातों को देखें तो कोई भी इंसान डर जाएगा लेकिन उसके बावजूद भी हमारे देश का गरीब से गरीब इंसान भी सच को भली भाँती पकड़ लेता है। 

मोदी ने कहा कि जब से मैंने भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ कड़े कदम उठाना शुरू किया है और 8 नवम्बर को रात 8 बजे नोटबंदी की तब से बहुत बड़ी ताकत देश को भ्रमित करने के लिए, झूठ फैलाने के लिए जी जान से जुटी हुई है, उनको देश की चिंता कम है, देश की आर्थिक स्थिति की चिंता कम है, नोटबंदी होने से क्या नफ़ा-नुकसान हुआ इसकी भी चिंता कम है, उनको चिंता इस बात की है कि वो बड़े बड़े लोग होने के बावजूद भी बच नहीं पाए। 

मोदी ने बताया कि मायावती और मुलायम सिंह ने तो खुलेआम संसद में कह दिया था कि मोदीजी करना है तो करो लेकिन बीच में 7-8 दिन मौका तो दे दो, कुछ समय तो दे दो। मोदी ने कहा - जिन जिन को परेशानी हुई है, जिन जिन का लुट गया था वे इकठ्ठे हो गए हैं। 

मोदी ने कहा कि आपने पिछले 15 साल में सपा और बसपा दोनों अलग अलग बातें बोलते थे लेकिन नोटबंदी के बाद दोनों एक ही बात बोलने लगे। मोदी को बुरा भला कहने लगे। इन लोगों ने इतना झूठ फैलाया है उसे सुनकर कोई भी डर जाय लेकिन देश की जनता इनकी बातों में नहीं आयी और सच को पकड़ लिया।

मोदी ने बताया कि अभी अभी ओडिशा में चुनाव हुए, वहां बीजेपी को झंडा रखने की भी जगह नहीं मिलती थी लेकिन चुनाव में गरीब लोगों ने बीजेपी को भारी जनसमर्थन दिया और विशाल जीत हुई।

कल महाराष्ट्र के चुनाव के नतीजे आये, कांग्रेस कहीं नजर नहीं आ रही है, पूरी साफ़ हो गयी। चंडीगढ़ में भी कांग्रेस साफ़ हो गयी, गुजरात में पंचायत चुनाव हुए, कर्णाटक के स्थानीय चुनाव हुए, पिछले तीन महीने में जहाँ भी चुनाव हुए, जनता ने तीसरे नेत्र की ताकत से बीजेपी को समर्थन दिया और बीजेपी को विजयी बनाया।
मोदी ने कहा कि अगर ओडिशा के लोग बीजेपी का समर्थन करते हैं, चंडीगढ़ के पढ़े लिखे लोग बीजेपी को समर्थन देते हैं, महाराष्ट्र में बीजेपी के लोग समर्थन देते हैं तो हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है इसलिए अब हमारे अन्दर काम करने की ताकत बढ़ गयी है इसलिए मैंने भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ मैंने जो लड़ाई छेडी है उससे पीछे हटने वाला नहीं हूँ। देश में 70 वर्षों में जितना भी धन लूटा गया है उसे मैं वापस लाकर गरीबों को दूंगा। 

BMC में शिवसेना ने अपनी हार पर मनाई ख़ुशी, फोड़े पटाखे

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मुंबई: मुंबई में शिवसेना को भले ही सबसे अधिक सीटें मिली हों लेकिन एक तरह से शिवसेना की हार हुई है क्योंकि इससे पहले 2012 के BMC चुनावों में शिवसेना को 89 सीटें मिली थीं लेकिन 2017 के चुनाव में सिर्फ 84 सीटें मिलीं, मतलब पांच सीटें छिन गयीं और इसे हार ही कहा जाएगा। उदाहरण के लिए अगर आप 100 रुपये किसी चीज में लगाओ और आपको 90 रुपये ही मिलें तो आप उसकी ख़ुशी कभी नहीं मनाओगे, आप ख़ुशी तब मनाओगे जब 100 के 110 मिलें लेकिन यहाँ तो शिवसेना को 89 के बदले 84 सीटें ही मिलीं उसके बाद भी शिवसेना ने ख़ुशी मनाई, मिठाई बांटीं और पटाखे भी फोड़े। 

शिवसेना ने क्यों मनाई अपनी हार की ख़ुशी

शिवसेना ने यह ख़ुशी अनजाने में मनाई क्योंकि शुरुआत में शिवसेना के पक्ष में बहुत तेजी से नतीजे आने शुरू हो गए थे, एक समय जब बीजेपी की केवल 30 सीटें थीं तो शिवसेना 65 पर पहुँच गयी थी, कई शिवसैनिक इसके बाद जोश में आ गए और उन्होंने सोचा कि अब बहुमत आना निश्चित है, कुछ ने तो यह भी कहा कि अब हमें बीजेपी की जरूरत ही नहीं पड़ेगा, छोटे मोटे की बात छोडो, शिवसेना सांसद संजय राउत ने खुद कहा कि उन्हें बीजेपी की जरूरत नहीं पड़ेगी समर्थन देने के लिए और भी पार्टियाँ हैं। 

इसके बाद शिवसैनिकों ने ढोल पीटना शुरू कर दिया, बीजेपी को बुरा भला और घमंडी बोलना शुरू कर दिया, कुछ शिवसैनिक तो बीजेपी को चिढ़ाने के लिए दादर में एक बीजेपी नेता के घर पहुँच गए और उसके घर के बाद ढोल पीटना शुरू कर दिया, वे लोग बीजेपी वालों को चिढ़ाने लगे लेकिन उन्हें पुलिस ने भगा दिया, कई जगह बीजेपी और शिवसैनिकों ने झड़प भी हुई। 

जब शिवसेना 92 पर पहुंची तो बीजेपी की सीटें केवल 65 थे, शिवसेना को लग रहा था कि वह बहुमत के नजदीक पहुँच जाएगी, उन्होने आतिशबाजी शुरू कर दी, मिठाइयाँ बांटनी शुरू कर दी, बधाई सन्देश शुरू हो गए, इसके बाद अचानक अंतिम समय में बीजेपी ने तेज गति से दौड़ लगानी शुरू, बीजेपी की सीटें बढ़ती गयी और शिवसेना की कम होने लगी, देखते ही देखते बीजेपी 82 पर पहुँच गयी और शिवसेना घटकर 84 पर आ गयी। 

शुरुआत में शिवसेना वाले बीजेपी को चिढा रहे थे लेकिन बीजेपी ने ऐसी दौड़ लगाईं कि शिवसेना के करीब पहुँच गयी। फाइनल रिजल्ट में शिवसेना की हार हुई थी क्योंकि 2012 की तुलना में शिवसेना को 5 सीटें कम मिलीं थी वहीँ बीजेपी को 2012 की तुलना में 50 सीटें अधिक मिलीं। 2012 में बीजेपी केवल 32 सीटें जीत पायी थी। 

मतलब शिवसेना ने बहुमत मिलने का सपना देखकर ढोल पीटा, ख़ुशी मनाई, मिठाइयाँ भी बांटी, बीजेपी को चिढाया भी लेकिन अंत में पांच सीटें हार गयी।

इससे राजनीतिक पार्टियों को ये सीख मिलती है कि जब तक फाइनल रिजल्ट ना आ जाए, ना ख़ुशी मनानी चाहिए, ना ढोल पीटने चाहिए और ना ही मिठाई बांटनी चाहिए। ऐसा ही काम बीजेपी ने बिहार में विधानसभा के नतीजे के वक्त किया था, जैसे ही बीजेपी ने अपनी जीत होते देखी पटाखे फोड़ने शुरू कर दिए लेकिन उसके बाद बीजेपी की बुरी तरह से हार हुई थी। 

नोटबंदी का विरोध करने के बाद भी मुंबई में क्यों आगे रही शिवसेना, पढ़कर हैरान रह जाएंगे आप

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मुंबई: आपने देखा होगा कि कांग्रेस हमेशा से ही नोटबंदी का विरोध कर रही है, सभी चुनावों में नोटबंदी को मुद्दा बना रही है, इसका परिणाम यह हो रहा है कि कांग्रेस सभी चुनाव हार रही है, कांग्रेस नोटबंदी का जितना अधिक विरोध करती है उतनी ही बुरी तरह हारती है, अब आप खुद देखिये कल महाराष्ट्र निकाल चुनाव के नतीजे आये तो कांग्रेस हर जगह से साफ हो गयी। 10 निकायों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया। 

कांग्रेस की तरह ही शिवसेना ने भी नोटबंदी का विरोध किया था, चुनाव प्रचार में शिवसेना और उसके अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने नोटबंदी को मुख्य मुद्दा बनाया था और मोदी के खिलाफ जमकर जहर उगला था उसके बावजूद भी शिवसेना मुंबई में सबसे अधिक सीटें जीत गयी। आइये बताते हैं कि शिवसेना की जीत के पीछे क्या कारण था। 

सबसे पहले तो जान लीजिये कि शिवसेना एक क्षेत्रीय पार्टी है और राज्यवाद की राजनीति करती है, यानी मराठी मानुष की राजनीति करती है। शिवसेना की जीत का सबसे बड़ा कारण यह था कि उन्हें कट्टर मराठियों का वोट मिला। उदाहरण के लिए थाणे में शिवसेना की जीत इसलिए हुई क्योंकि वहां पर मराठा वोटर सबसे अधिक थे। शिवसेना कुल 131 सीटों वाले ठाणे नगर निगम पर पहले भी शिवसेना का ही कब्ज़ा था और इस बार भी शिवसेना की ही जीत हुई। यहाँ पर बीजेपी को सिर्फ 23 सीटें मिलीं जबकि एनसीपी को 34 सीटें मिलीं। बीजेपी को सबसे कम सीटें मिलता इस बात का सबूत है कि यहाँ पर मराठा पॉलिटिक्स हावी रही और इन लोगों ने नोटबंदी को नहीं देखा। पर महाराष्ट्रियन हिंदुओं की जनसँख्या करीब 80 फ़ीसदी है जबकि 17 फ़ीसदी मुस्लिम हैं। मुस्लिम 17 फ़ीसदी हैं इसलिए तीन सीटें असद्दुदीन की पार्टी AIMIM ने भी जीत लीं। 

अब आइये, मुंबई की बात करते हैं, यहाँ पर सभी धर्मों, सभी जातियों और सभी राज्यों के लोग रहते हैं लेकिन यहं पर महाराष्ट्रियन हिंदुओं यानी मराठा मानुषों की जनसँख्या 42 फ़ीसदी है जबकि गुजराती हिंदुओं की जनसँख्या 19 फ़ीसदी है इसके अलावा 20 फ़ीसदी मुस्लिम हैं।

यहाँ पर मराठा लोगों की जनसँख्या भले ही 42 फ़ीसदी है लेकिन ये लोग बड़े शहर में रहने के कारण कट्टर मराठी या क्षेत्रवादी नहीं हैं, वैसे भी बड़े शहरों में रहने वाले लोग क्षेत्रवाद नहीं देखते हैं। इसलिए यहाँ पर मराठा लोगों ने बीजेपी को भी वोट दिया और शिवसेना को भी वोट दिया। 

शिवसेना के लिए मुम्बई में जीत के सबसे बड़े फैक्टर बनें हार्दिक पटेल जिन्हें शिवसेना ने चुनाव से ठीक पहले गुजरात में शिवसेना का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना दिया जबकि उनकी ना उम्र है और ना ही कोई अनुभव। शिवसेना ने ऐसा करके बहुत बड़ा राजनीतिक गेम खेल दिया। 

हार्दिक पटेल के पीछे शिवसेना का गेम प्लान

हार्दिक पटेल को सोची समझी रणनीति के तहत शिवसेना में लाया गया है, गुजरात में पटेलों की जनसँख्या 15 फ़ीसदी है यानी करीब 1 करोड़। मुम्बई में 19 फ़ीसदी गुजराती आकर बस गए हैं यानी करीब 20 लाख गुजराती रहते हैं जिनमें से करीब 30 फ़ीसदी यानी 6 लाख पटेल हैं। इन्हीं 6 लाख पटेलों का वोट पाने के लिए हार्दिक पटेल को शिवसेना में लाया गया था और इसका लाभ भी मिला। गुजरात के पटेल पिछले कुछ समय से एंटी बीजेपी हो गए हैं और केवल बीजेपी को हारने वालों को वोट दे रहे हैं, मुंबई में भी पटेलों का वोट शिवसेना की जीत के लिए तुरुफ का इक्का साबित हुआ। अगर शिवसेना ने ऐसा ना किया होता तो शायद शिवसेना को मुम्बई में विपक्ष में बैठना पड़ता। 

अगर ऐसा नहीं है तो आप खुद सोचिये, पाटीदार की राजनीति करने वाले हार्दिक पटेल को अचानक शिवसेना में क्यों लाया गया, उन्हें गुजरात में मुख्यमंत्री उम्मीदवार क्यों बनाया गया, जो शिवसेना महाराष्ट्र में कई जगह खाते भी नहीं खोल पाई वो गुजरात में चुनाव कैसे जीत सकती है और हार्दिक पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री कैसे बना सकती है। यह सब केवल मुंबई में पटेलों का वोट लेने के लिए किया गया था और इस फैक्टर ने काम भी किया।