नई दिल्ली: कांग्रेस ने एक अलग तरह की पॉलिटिक्स की शुरुआत की है. कभी चाय बेचने वालों का मजाक बनाते हैं, कभी पकौड़ा बेचकर लाखों लोगों का पेट भरने वालों का मजाक बनाते हैं, सबसे आश्चर्य इस बात का है कि कांग्रेस चाय पकौड़ा बेचने वालों की तुलना भिखारियों से कर रही है.
अगर चाय पकौड़ा बेचना मजबूरी है तो ढाबा चलाना भी मजबूरी है, होटलों में खाना बनाना भी मजबूरी है, रिक्शा चलाना भी मजबूरी है, ऑटो चलाना भी मजबूरी हिया, टैक्सी चलना भी मजबूरी है, बस चलाना भी मजबूरी है, फैक्ट्रियों में मजदूरी करना भी मजबूरी है. फ़ौज में जाना भी मजबूरी है, मंडियों में सब्जियां बेचना भी मजबूरी है, किसानी करना भी मजबूरी है, नाइ का काम करना भी मजबूरी है, स्वरोजगार करना भी मजबूरी है, हलवाई का काम करना भी मजबूरी है, सफाई करना भी मजबूरी है, कूड़ा उठाना भी मजबूरी है.
अगर कोई आदमी अपनी ख़ुशी से चाय-पकौड़ा नहीं बनाता तो कोई भी आदमी अपनी ख़ुशी से ऑटो रिक्शा नहीं चताता, बस नहीं चलाता, ट्रेन नहीं चलाता, होटल में खाना नहीं बनाता, सफाई नहीं करता, सीवर की सफाई नहीं करता, मजदूरी नहीं करता, हर आदमी को कुर्सी पर बैठकर मोटी सैलरी लेने का मन करता है.
कांग्रेस चाय-पकौड़ा बेचने वालों का मनोबल तोड़कर उनका अपमान कर रही है, इसका मतलब है कि जब ताहुल गाँधी प्रधानमंत्री बनेंगे तो सभी देशवासियों को सीधा जिलाधिकारी बना देंगे और उन्हें कुर्सी पर बिठाकर मोटी सैलरी देंगे.
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