नए दिल्ली: रोहित सरदाना ने कासगंज मामले पर तिरंगे का पक्ष लिया था क्योंकि कासगंज में सारा फसाद तिरंगा यात्रा को लेकर हुआ था, हिन्दू लोग तिरंगा यात्रा लेकर बाइक से जा रहे थे लेकिन मुस्लिमों ने उनका रास्ता रोक लिया, सड़क जाम कर दी और उन्हें वापस लौटने के लिए कहा, इसके बाद छतों से हिन्दुओं के ऊपर पत्थर बरसने लगे और छत से ही गोली चली जिसमें चन्दन गुप्ता उर्फ़ अभिषेक गुप्ता की मौत हो गयी. अगर मुस्लिम लोग उनका रास्ता ना रोकते और उन्हें सड़क से जाने देते तो कोई फसाद ना होता, रोहित सरदाना ने इस मुद्दे पर डिबेट की तो अफजल प्रेमी मीडिया गैंग को बुरा लग गया और रोहित सरदाना को ट्विटर पर ट्रोल किया जाने लगा, आज रोहित सरदाना ने भी अफजल प्रेमी मीडिया गैंग को करारा जवाब दिया है.
रोहित सरदाना ने अफजल प्रेमी मीडिया गैंग को ये जवाब दिया
इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है. फिर एक नैरेटिव सेट हो रहा है.
जैसे जेएनयू में हुआ था.
‘देश के टुकड़े होने के नारे लगे ही नहीं. वीडियो झूठा है. पाकिस्तान ज़िंदाबाद कहा ही नहीं गया. कैमरे झूठ बोल रहे हैं.’
जैसे कैराना में हुआ था.
‘लोग घर छोड़ कर गए ही नहीं. घरों पे लगे ताले झूठे हैं. कोई पलायन हुआ ही नहीं. बरसों बरस से पुश्तैनी मकान छोड़ कर और जगहों पर बस गए लोग झूठ बोलते हैं. मीडिया झूठ दिखा रहा है.’
जैसे मालदा में हुआ था.
‘कोई हंगामा या प्रदर्शन हुआ ही नहीं. ये टीवी वाले तो झूठ दिखा रहे हैं. बंगाल के तो किसी अखबार में छपा ही नहीं है. थाने में आग लगा दी ? अच्छा? वो तो कोई गुंडे थे, दंगा थोड़े न हुआ !’
जैसे धूलागढ़ में हुआ था.
जैसे दादरी में हुआ था.
जैसे कर्नाटक में प्रशांत पुजारी की मौत पर हुआ था.
या फिर जैसे कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ था.
एक कहावत है, जब किसी को यकीन न दिला सको - तो उसे भ्रमित कर दो. इफ यू कांट कन्विन्स देम, कन्फ्यूज़ देम. उनके सामने इतने सारे झूठ परोस दो कि वो मजबूरन उनमें से किसी झूठ को ही सच मानने को मजबूर हो जाएं.
इसी लिए करणी सेना के कथित ‘गुंडे’ जब भंसाली के विरोध में सड़क पर उतरते हैं, तो उन्हें आतंकवादी कहने में देर नहीं लगाई जाती. लेकिन कासगंज के आरोपियों के यहां जब बंदूकें और होटलों में देसी बम मिलते हैं - तो उन्हें आतंकवादी कहना तो दूर उनकी पैरवी के लिए लोग टीवी-अखबार छोड़िए, घर में बनाए जाने वाले सुतली बमों जैसे देसी वीडियो तक बना बना कर मैदान में कूदते हैं.
तिरंगे की यात्रा निकालने पर झगड़ा हुआ या नहीं, इस पर जान गंवाने वाले लड़के की बिलखती मां की गवाही झूठी हो जाती है. उनकी गवाही सही हो जाती है जिन पर उस सोलह साल के बच्चे को मार देने का आरोप लगता है !
गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने की इजाज़त नहीं ली गई थी जैसे तर्क दिए जाते हैं. और जब वो कुतर्क फेल हो जाते हैं तो तिरंगा ले के निकलने वालों को ‘भगवा गुंडे’ क़रार दे दिया जाता है.
ये संज्ञाएं गढ़ने वाले वही लोग हैं जो हरियाणा के जाटों पर ‘बलात्कारी’ होने का झूठ चस्पां करने में पल भर नहीं सोचते. और फिर अपने उस झूठ को सच साबित करने के लिए झूठी गवाहियां भी गढ़ते हैं, सुबूत भी.
ये वही लोग हैं जिन्हें खाने की थाली का धर्म पता है, स्कूल की प्रार्थना का धर्म पता है, इमारतों की दीवारों के रंगों का धर्म पता है, योग का धर्म पता है, सूर्य नमस्कार का धर्म पता है, वंदे मातरम का धर्म पता है, भारत माता की जय का धर्म पता है - बस आतंक का धर्म नहीं पता !
तय कीजिए, झूठ ये फैलाते आए हैं - या वो फैला रहे हैं जिन्होंने इनके झूठ की पोलें खोलनी शुरू की तो इनकी चूलें हिलने लगी हैं?
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