अगर बॉबी कटारिया की पैरवी करता कोई साइबर एक्सपर्ट वकील तो अब तक घर होते बॉबी कटारिया, पढ़ें

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गुरुग्राम: युवा एकता फाउंडेशन के चीफ बॉबी कटारिया के खिलाफ एक के बाद एक केस दर्ज होते जा रहे हैं लेकिन कोई वकील ना तो उनकी जमानत करवा पा रहा है और ना ही हाई कोर्ट में जाकर FIR रद्द करवाने की अपील कर पा रहा है, ऐसा लगता है कि बॉबी कटारिया के घर वालों के पास अच्छे साइबर एक्सपर्ट वकीलों की कमीं है इसलिए वे केस के बारे में सही ढंग से तर्क नहीं दे पा रहे हैं और उसी का नतीजा ये है कि बॉबी कटारिया पर एक के बाद एक केस दर्ज होते जा रहे हैं.

बॉबी कटारिया फरीदाबाद की नीमका जेल में सजा काट रहे हैं, सबसे हैरानी की बात तो यह है कि अभी तक किसी को यह भी नहीं पता है कि बॉबी कटारिया को कितने दिनों के लिए जेल भेजा गया है. ऐसा लग रहा है कि कानून का मजाक उड़ाया जा रहा है और बॉबी के वकील मजाक उड़ता हुआ देख रहे हैं.

क्या होते हैं साइबर एक्सपर्ट वकील

जिस तरह से तीन प्रकार की पुलिस होती है - सिविल पुलिस, क्राइम ब्रांच पुलिस और साइबर पुलिस. उसी प्रकार से तीन प्रकार के वकील भी होते हैं - सिविल लायर, क्रिमिनल लायर और साइबर एक्सपर्ट लायर. सिविल लायर क्रिमिनल लायर का केस नहीं लड़ता, उसी प्रकार से सभी वकीलों को साइबर लॉ की जानकारी नहीं होती. बड़े से बड़े सिविल या क्रिमिनल वकीलों को भी जरूरी नहीं कि साइबर लॉ की जानकारी हो.

बॉबी को साइबर एक्सपर्ट वकीलों की क्यों जरूरत

बॉबी कटारिया को बड़े से बड़े वकीलों की नहीं बल्कि साइबर एक्सपर्ट वकीलों की जरूरत है. हर किसी को सोशल मीडिया, आईटी लॉ और साइबर लॉ का ज्ञान नहीं होता. यहाँ तक कि राम जेठमलानी को भी साइबर लॉ का ज्ञान नहीं होगा, साइबर लॉ विल्कुल अलग चीज है.

बॉबी कटारिया पर पर्स चोरी के मामले को छोड़कर सभी मामले फेसबुक वीडियो के आधार पर लगाए गए हैं - चाहे वह हरिजन एक्ट का केस हो या जबरन वसूली का, ऐसे में वकीलों को सभी वीडियो देखकर उसकी रिपोर्ट बनानी चाहिए और आईटी लॉ के आधार पर कानूनी लड़ाई लडनी चाहिए और तर्क रखने चाहियें लेकिन इसलिए लिए जरूरी है कि आईटी और आईटी लॉ का ज्ञान और अनुभव होना . भारत में अभी साइबर मामले कम सामने आते हैं इसलिए साइबर वकील भी कम ही हैं.


वैसे भी फेसबुक वीडियो के आधार पर यह अपने आप में पहला मामला है.

बॉबी कटारिया ने किसी भी पुलिस वाले को उसके मुंह पर गाली नहीं दी है, उन्होंने फेसबुक वीडियो में गालियाँ दी हैं, यह आईटी एक्ट का मामला है, यह IT एक्ट 67A का मामला बनता है जिसमें किसी के खिलाफ गालियां देना अपराध है लेकिन यह Bailable Offence है, मतलब इसमें हैंड टू हैंड जमानत है.

इसके बाद जबरन वसूली का केस (IPC धारा  386) का मामला भी फेसबुक वीडियो के आधार पर ही दर्ज किया गया है, जबकि वीडियो में साफ़ साफ़ पता चल रहा है कि पैसा निकिता के इलाज के लिए माँगा जा रहा है जिसका पैर अरावली स्कूल की बस के नीचे कट गया था. अगर धमकी दी भी गयी है तो यह भी आईटी लॉ के अंतर्गत आता है और इसकी भी इसी कानून के तहत जाँच पड़ताल होनी चाहिए. हमने वीडियो देखा तो कहीं से भी नहीं लगा कि बॉबी कटारिया ने किसी भी आदमी से अपने लिए जबरन पैसे मांगे हैं. हाँ उसनें निकिता के इलाज के लिए जरूर पैसे मांगे थे.

साइबर कोर्ट भी होती हैं अलग

बॉबी कटारिया के वकील इस मामले को लेकर साइबर कोर्ट भी जा सकते हैं और वहां पर सभी FIR को रद्द करवा सकते हैं, सिविल कोर्ट के जज फेसबुक वीडियो नहीं देखते और ना ही उनके पास देखने का समय होता है, जज वही फैसला सुनाते हैं तो पुलिस वाले अपनी रिपोर्ट में लिखकर देते हैं. जजों के पास इतना समय ही नहीं होता, ऐसे में अगर वकील सही से तर्क नहीं दे पाते तो जज झट से पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर फैसला सुना देते हैं. लेकिन साइबर कोर्ट के जज हर तरह से चेक करके ही फैसले सुनाते हैं.

अभी तक हाई कोर्ट नहीं गए बॉबी के पैरोकार

यह भी सवाल उठ रहे हैं कि बॉबी कटारिया के वकील अब तक हाई कोर्ट क्यों नहीं गए, आखिर किस चीज का इंतजार कर रहे हैं. अगर यहाँ पर पुलिस-प्रशासन और जजों पर दबाव है तो हाई कोर्ट में जमानत की अर्जी देनी चाहिए थे, वहां से कई FIR भी रद्द हो जाती - जैसे जबरन वसूली की. यही नहीं हरिजन एक्ट का मामला भी वहां पर रद्द हो जाएगा क्योंकि जिस वीडियो के आधार पर उनपर हरिजन एक्ट का मामला दर्ज हुआ है उसमें उन्होंने किसी भी जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है.
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