असदुद्दीन ओवैसी को बोले एमजे अकबर, अगर इन्हें बोलना शुरू करूँगा तो बहुत लम्बी दास्तान हो जाएगी

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नई दिल्ली: कल मोदी सरकार में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने तीन तलाक बिल के समर्थन में लोकसभा में सरकार का पक्ष रखा और बिल का विरोध कर रहे असदुद्दीन ओवैसी की बोलती बंद कर दी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ओवैसी आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कहने पर तीन तलाक का विरोध कर रहे हैं, कल एमजे अकबर ने मुस्लिम बोर्ड को एक्सपोज कर दिया और बता दिया कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की हकीकत क्या है और यह संस्था काम क्या करती है.

एमजे अकबर के भाषण के बीच में असदुद्दीन ओवैसी ने उन्हें टोकना चाहा तो एमजे अकबर ने कहा कि मैं इन्हें कुछ बोलना नहीं चाहता क्योंकि अगर मैं इन्हें बोलना शुरू करूँगा तो बहुत लम्बी दास्तान हो जाएगी, उनके ऐसा कहने ही ओवैसी चुप होकर बैठ गए.

क्या है आल इंडिया मुस्लिम पर्सनक लॉ बोर्ड

एमजे अकबर ने कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि यह 1400 साल पुरानी संस्था होगी लेकिन असलियत यह है कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन 1973 में इंदिरा गाँधी सरकार के समय हुआ था, इस संस्था के लोगों ने खुद ही अपने आप को चुन लिया, मैंने इस संस्था को कोट करने वालों से सिर्फ यह पूछना चाहता हूँ कि इसकी विश्वसनीयता क्या है,  किसने इस बॉडी को इलेक्ट किया, ये लोग किस आधार पर मुस्लिमों के रहनुमा बन गए, क्या कौम के अन्दर इलेक्शन होता है जिसमें यह जीतकर आते हैं. ये तो अपने आप को चुन लिए, ये लोग अपने आप को चुनकर अपने ही ख्याल के लोगों को जोड़ते जाते हैं और देश के साढ़े 18 करोड़ मुस्लिमों की झूठी आवाज बन गए हैं. जब भी कोई बात होती है तो ये कहते हैं कि उनसे पूछ लो, अरे भाई क्यों पूछ लें, यहाँ पर हम लोग कई पार्टी से हैं लेकिन इलेक्ट होकर आये हैं, हमारा अधिकार है. लेकिन उनका क्या अधिकार होता है.

उन्होंने कहा कि ये लोग तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं के गुजारा-भत्ता के लिए तड़प रहे हैं लेकिन शाहबानों को सिर्फ 127 रुपये गुजारा भत्ता ना देना पड़े इसके लिए आपने पूरे देश में आन्दोलन किया. उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को पता नहीं कितना चंदा मिलता है लेकिन लाखों महिलाऐं तीन तलाक की वजह से बर्बाद हुई हैं लेकिन उन्हें एक पाई नहीं दी गयी.

इस्लाम कैसे खतरे में पड़ जाएगा

उन्होंने कहा कि 1986 में आप लोगों ने कौन से तर्क का इस्तेमाल किया था, उसे मैं बहुत खतरनाक मानता हूँ और इस तर्क का इस्तेमाल करने वाले यहाँ पर बैठे हैं - इस्लाम खतरे में है. शरिया को बर्बाद किया जा रहा है. मैं एक मुसलमान के नाते कुछ बोलना चाहता हूँ, जो कलमा पढ़ा हो वो किस हैसियत के कहना है कि इस्लाम खतरे में है, अगर वह इस्लाम को सच्चा मजहब मानता है तो इस्लाम खतरे में पड़ ही नहीं सकता. लेकिन आपने इस गलत नारे का इस्तेमाल किया, आजादी से पहले देश तोड़ने के लिए और आज आप इस्तेमाल करते हैं समाज को तोड़ने के लिए. ये जहर फैलाया जा रहा है. कुछ खतरे में नहीं है, सिर्फ कुछ मुसलमान मर्दों की जबरदस्ती है वही खतरे में है. और कुछ खतरे में नहीं है.
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