मोदी राज आते ही फिर से इसाई लोग अपना रहे हैं हिन्दू धर्म

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पिछली यूपीए सरकार के कार्यकाल में जिस गति से निर्धनों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर ईसाई बनाया गया था, आज उसी गति से ईसाई धर्म में बड़े पैमाने पर भेदभाव से परेशान कई दलित परिवार दोबारा हिंदू धर्म अपना रहे हैं। 

स्मरण हो, पिछली सरकार के चलते रोहिणी दिल्ली के होटल रॉयल में हर रविवार को ईसाईकरण का धंधा चल रहा था, जिसका वहां के स्थानीय लोगों द्वारा विरोध करने पर पुलिस ने उन्ही पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी, लेकिन प्रभावी नेताओं के आगे पुलिस ने अपनी नौकरी बचाने के लिए समझौता नीति को अपनाकर मामले को शान्त किया। लेकिन केन्द्र में सत्ता परिवर्तन होते ही, इस काम पर विराम लग गया। 

मीडिया निर्धन दलितों द्वारा हिन्दू धर्म छोड़ इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाए जाने पर हिन्दू धर्म गुरुओं को तो कटघरे में खड़ा करने का साहस कर सकता है, लेकिन दलितों के नाम पर बनायीं पार्टियों के प्रधानों को कटघरे में खड़ा करने का साहस नहीं कर पाता। क्यों नहीं इन पार्टियों के विरुद्ध मुहिम चलाई जाती? क्या इन पार्टियों का गठन केवल उनका और उनके समर्थकों का उत्थान करने के लिए हुआ है? 

ये ट्रेंड सबसे ज्यादा दक्षिण भारत के राज्यों केरल और तमिलनाडु में देखा जा रहा है। जहां तक केरल की बात है यहां बड़े पैमाने पर दलित परिवारों ने हिंदू धर्म में वापसी की है। केरल सरकार के गजट में जारी आंकड़ों के मुताबिक 2015 में 1335 लोगों ने आधिकारिक तौर पर अपने धर्म बदले, जिनमें से 660 ईसाई थे, जिन्होंने वापस हिंदू धर्म को अपनाया है। इनमें से ज्यादातर वो परिवार हैं जिन्होंने बीते एक दशक में ईसाई मिशनरियों के असर में आकर धर्मांतरण कर लिया था। केरल में धर्म बदलने के बाद उसे कानूनी जामा पहनाने के लिए गजट नोटिफिकेशन छपवाना जरूरी होता है।

अक्सर मीडिया की सहायता से हमारे छद्दम धर्म-निरपेक्ष नेता हिन्दू धर्म में भेदभाव को अपने वोट-बैंक के लिए खूब शोर मचाते हैं, जबकि हिन्दू धर्म से कहीं अधिक भेदभाव दूसरे धर्मों में है, जो किसी को दिखाई नहीं देता। प्रमाण देखिए: हिन्दू, सिख, जैन एवं अन्य दूसरे सभी हिन्दुओं के पूजा स्थल अलग जरूर हैं, किसी को किसी के पूजा स्थल पर जाने की पाबन्दी नहीं, शमशान घाट एक ही है। लेकिन ईसाई एवं मुस्लिम समाज में कितना भेदभाव है किसी को दिखाई नहीं देता, यहाँ आकर सभी सूरदास बन जाते हैं। ये दोनों समाज केवल इस्लाम एवं ईसाईयत के नाम पर ही एक होते हैं। अन्यथा कब्रिस्तान अलग-अलग हैं, क्यों? 

तेजी से बढ़ रही है ‘घर वापसी’

केरल सरकार के 2016 के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह चलन साल-दर-साल बढ़ रहा है। 2016 के जुलाई महीने तक केरल में 780 धर्मांतरण रजिस्टर किए गए थे। इनमें से 402 ईसाई से हिंदू बनने के मामले थे। देश में कुल ईसाई आबादी का 95 फीसदी दलित जातियों के लोग हैं, जिन्होंने धर्मांतरण करके ईसाई धर्म अपनाया था। लेकिन उन्हें न तो किसी किस्म के धार्मिक अधिकार मिले न ही सामाजिक समानता ही हासिल हुई। यह पाया जा रहा है कि सबसे ज्यादा भेदभाव ईसाई धर्म में ही है। केरल में जुलाई 2016 से पहले के 19 महीनों में सबसे ज्यादा 1189 ईसाइयों ने धर्मांतरण किया। इसके बाद हिंदुओं की संख्या आती है जिनके 840 लोगों ने धर्म बदला। इनमें सबसे ज्यादा लव जिहाद के मामले रहे। जबकि 85 लोगों ने इस्लाम को छोड़ा। इस्लाम छोड़ने वालों की संख्या इसलिए कम है क्योंकि ऐसा करने वालों को हत्या का डर रहता है।

दलितों के साथ हुआ धोखा

केरल के कन्वर्टेड ईसाइयों के संगठन के पदाधिकारी एन रवींद्रन का कहना है कि “ईसाई बने दलितों की स्थिति बेहद खराब है। जब हम हिंदू थे तो बेहतर स्थिति में थे। हम ईसाई बनने के बावजूद दलित और अछूत हैं।” उनका कहना है कि “हमें शिक्षा में मदद और नौकरियों में एक फीसदी आरक्षण के अलावा कुछ भी नहीं मिलता। जबकि हिंदू दलितों को अनुसूचित जाति होने के कारण शिक्षा से लेकर मकान, शादी और इलाज तक में सरकारी मदद मिलती है।” ज्यादातर लोगों का कहना है कि ईसाई बनने के बाद जब लोगों ने पाया कि उनकी समाजिक और आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया तो उन्होंने वापस हिंदू धर्म अपनाना ही बेहतर समझा। क्योंकि उनसे दूसरे ईसाई शादी वगैरह के रिश्ते भी नहीं रखते। उनके साथ अत्याचार होते हैं और उसकी शिकायत भी नहीं की जा सकती।

हिंदुओं में सामाजिक सुधार तेज

दलित ईसाइयों के संगठन के पूर्व प्रमुख शिन्स पीटर का कहना है कि “लोगों में यह आम धारणा बनती जा रही है कि ईसाइयों और मुसलमानों के मुकाबले हिंदू समाज में सामाजिक बदलाव आसानी के साथ होते हैं। पहले दलितों की स्थिति खराब थी, लेकिन अब तेजी से बदलाव आया है। ऊंची जातियों की नई पीढ़ी में जातीय पूर्वाग्रह नहीं हैं। इसके उलट ईसाई और मुसलमानों में धर्मांतरण करने वाले दलितों को तुच्छ नजर से देखा जाता है।” इसके अलावा आरक्षण भी बड़ा कारण है जिससे हिंदू धर्म में रहना फायदेमंद माना जा रहा है। (आर.बी.एल निगम,वरिष्ठ पत्रकार )
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