देश में राहुल गाँधी को कोई नहीं सुनता, इसलिए विदेश में जाकर दुखड़ा रो रहे हैं: स्मृति इरानी

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राहुल गाँधी ने कल अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया में भाषण दिया था. वंशवाद पर बोलते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि सिर्फ मैं वंशवाद का प्रोडक्ट नहीं हूँ, मुकेश अम्बानी, अभिषेक बच्चन, अखिलेश यादव, धूमल, स्टॅलिन जैसे कई नेता और बिजनेसमैन वंशवाद का प्रोडक्ट हैं. राहुल गाँधी ने मोदी पर भी जमकर हमला बोला था.

उन्होंने मोदी के बारे में बोलते हुए कहा कि मोदी एक अन्दर मुझसे बढ़िया भाषण देने की कला है लेकिन वे अपने ही लोगों से बात नहीं करते, जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं बढ़ गयी हैं, हमने 2013 में आतंकवाद की कमर तोड़ दी थी लेकिन अब मोदी सरकार ने फिर से आतंकवाद खडा कर दिया है. अब हमारे देश में दलितों को मारा जा रहा है, मुस्लिमों को मारा जा रहा है, लिबरल पत्रकारों को मारा जा रहा है. नफरत फैलाई जा रही है. धार्मिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है. मोदी ने देश पर नोटबंदी थोपकर आर्थिक संकट खड़ा कर दिया, देश की GDP 2 फ़ीसदी घट गयी.

इसी बात पर प्रतिक्रिया देते हुए स्मृति इरानी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसना राहुल गाँधी जी के लिए कोई नयी बात नहीं है. लेकिन ये भी अपने आप में उनकी फेल्ड स्ट्रेटेजी का प्रतीक है क्योंकि जिस देश में वह राजनीतिक पार्टी का नेतृत्व करते हैं उस देश के नागरिकों द्वारा उनके इस कथन का समर्थन प्राप्त ना होने के बाद अब वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक पीड़ा को व्यक्त कर रहे हैं. 

स्मृति इरानी ने कहा कि शायद राहुल गाँधी फिर भूल गए हैं कि वोटर तो भारतीय नागरिक ही हैं और उस वोटर ने 2014 में अपने वोट के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी में अपना विश्वास व्यक्त किया है.

स्मृति इरानी ने कहा कि ये भी उचित होगा कि आज राहुल गाँधी जी ने जब विदेश में कहा कि हिंदुस्तान तो ऐसा ही है, यहाँ पर वंशवाद वाले ही सब कुछ चलाते हैं, शायद वह भूल गए हैं कि आजाद हिंदुस्तान में आज कई ऐसे नागरिक हैं जो कई क्षेत्रों में योगदान देते हैं लेकिन वे किसी राजनीतिक परिवार से नहीं है.

स्मृति इरानी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं एक सामान्य गाँव से आते हैं. गरीब परिवार में जन्में हैं, भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी एक ऐसे परिवार से हैं जो पिछड़े समाज में गिना जाता है, उपराष्ट्रपति जी किसान के बेटे हैं और संघर्ष के बाद उन्हें ये दाइत्व प्राप्त हुआ है. अपने आप में भारत के संवैधानिक पदों पर इन तीन व्यक्तियों का होना इस बात का संकेत है कि एक जीवंत लोकतंत्र में वंशवाद की नहीं बल्कि मेरिट की जरूरत होती है. आज एक फेल वंशवाद ने अमेरिका में अपनी फेल राजनीति का वर्णन किया है.
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