रामपुर कांड: अगर दलित महिलाओं को छेड़ने वाले हिन्दू होते तो मीडिया वाले अब तक मचा देते कोहराम

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रामपुर: रामपुर की घटना पर नजर डालिए, दो दलित समाज की लड़कियों को 10-12 मुस्लिम युवकों ने खुलेआम छेड़ा, उनके साथ बदतमीजी की हद पार कर दी और VIDEO भी बना लिया लेकिन मीडिया वालों ने ना तो छेड़ने वालों का नाम बताया और ना ही उनका धर्म बताया, ना ही इसे बड़ा मुद्दा बनाया, अगर इन दलित लड़कियों को राजपूत या सवर्ण छेड़ देते तो मीडिया वाले अब तक कोहराम मचा चुके होते और एक दो साल तक यह मुद्दा छाया रहता और राहुल गाँधी, केजरीवाल, मायावती, ममता बनर्जी अब तक रामपुर में डेरा डाल चुके होते. सभी मीडिया चैनलों की गाड़ियाँ रामपुर में पहुँच जाती, वहीँ से LIVE रिपोर्टिंग होती लेकिन छेड़ने वाले लड़ने मुस्लिम हैं इसलिए मीडिया खामोश हो गयी है.

इसी तरह कल दिल्ली में एक ई-रिक्शा ड्राइवर को 2 लोगों ने सिर्फ इसलिए पीट पीट कर मार डाला क्योंकि क्योंकि उसनें दोनों युवाओं को खुले में पेशाब करने से मना किया था, दोनों हत्यारे युवक मुस्लिम हैं और उनके नाम - मोहम्मद आरिफ और मुहम्मद अरबाज हैं लेकिन मीडिया ने उनका नाम जानते हुए भी नहीं बताया क्योंकि इससे इस्लाम धर्म खतरे में आ जाता है और दोगले मीडिया इस बात का बहुत ख्याल रखते हैं, अगर पीटने वाले हिन्दू धर्म के होते, सवर्ण होते और जिसकी हत्या हुई है, वह दलित होता तो मीडिया वाले पीटने वालों की जाती, धर्म और गोत्र तक बता देते ताकि दलित राजनीति करने वालों को सरकार के खिलाफ बोलने का मौका मिल जाए.

ई-रिक्शा ड्राइवर रविन्द्र की कोई गलती नहीं थी, वह तो मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित था, बीमारियों के प्रति जागरूक था, दिल्ली में GTB मेट्रो स्टेशन से बाहर दोनों मुस्लिम युवक खुले में पेशाब कर रहे थे, दोनों युवक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं, उन्हें शायद मोदी सरकार या मोदी के स्वच्छ भारत अभियान ने बहुत नफरत रही होगी इसलिए जैसे ही ई-रिक्शा ड्राइवर ने उन्हें पेशाब करने से रोका, दोनों को इतना गुस्सा आ गया कि उसकी पीट पीटकर जान ले ली लेकिन दोगली मीडिया ने दोनों युवकों का नाम छुपा लिया.

अगर यही घटना किसी मुस्लिम के साथ हुई होती और पीटने वाले हिन्दू होते तो मीडिया वाले छापते - राजपूतों ने निर्दोष मुस्लिम की पीट पीट कर की हत्या. इसके बाद सभी विरोधी राजनीतिक पार्टियाँ मुस्लिम के घर का दौरा करतीं, असहिष्णुता का मुद्दा बनाया जाता और पूरे देश में बवाल मचा दिया जाया, पूरे विश्व में भारत को बदनाम कर दिया जाता, मानवाधिकार संगठन हरकत में आ जाते, अंतर्राष्ट्रीय अदालत और यूनाइटेड नेशन में यह मामला पहुँच जाता, मीडिया वाले और विपक्षी पार्टियाँ पूरे एक साल तक तांडव मचाते रहते.

खैर, जो हुआ सो हुआ, लेकिन मोदी सरकार तुरंत एक्शन में आयी, केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने रविन्द्र के घर का दौरा किया, उसकी पत्नी को MCD में नौकरी दी गयी और उसे स्वच्छ भारत अभियान में जान देने के लिए 1 लाख रुपये का इनाम दिया गया.
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