पहले स्कूलों में अध्यापकों का पढ़ाने पर ध्यान रहता था, अब मिड-डे-मील से अनाज चुराने पर रहता है

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New Delhi: आज आप किसी भी माँ-बाप से पूछकर देखिये - क्या वे अपने बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं तो उसका उत्तर होगा, नहीं. जब आप कारण पूछेंगे तो वह बताएँगे कि - सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती. जब आप पूछेंगे कि - सरकार स्कूलों में क्यों पढ़ाई नहीं होती तो वे बताएँगे कि अब अध्यापकों का ध्यान बच्चों को पढ़ाने पर नहीं बल्कि मिड-डे-मील योजना में से राशन चुराने पर रहता है, अब वे दिनभर यही सोचते रहते हैं कि मिड-डे-मील में से कितना राशन बचेगा, उनके हिस्से में कितना माल आएगा, वे घर पर कितना राशन लेकर जाएंगे. अब दिन भर पढ़ाने के बजाय करीब 90 फ़ीसदी अध्यापकों का ध्यान लूट खसोट पर रहता है. इसीलिए सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती.

प्राइमरी स्कूलों की असलियत जानकार ही आज माँ-बाप अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने से डर रहे हैं, प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना उनकी मजबूरी बन गयी है क्योंकि मिड-डे-मील योजना आने के बाद सभी के सभी सरकारी प्राइमरी स्कूलों पर से अचानक माँ-बाप का भरोसा उठ गया, देखते ही देखते सभी सरकारी प्राइमरी स्कूल खाली हो गयी और प्राइवेट स्कूल भरने लगे. अब हालत यह है कि कोई भी माँ-बाप अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूलों में पढने के लिए नहीं भेजना चाहता, सबसे बुरी हालत उत्तर प्रदेश में है. वहां पर प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा की हालत बहुत दयनीय है और अगर तुरंत ही इन स्कूलों पर बंद कर दिया जाय तो सरकार का बहुत पैसा बचेगा क्योंकि सरकारी शिक्षकों को सरकार 50 हजार से अधिक की सैलरी दे रही है लेकिन पढ़ाने के मामले में वे 0 हैं क्योंकि उनका ध्यान राशन चुराने पर अधिक रहता है.

सरकार ने मिड-डे-मील योजना यह सोचकर शुरू की थी कि बच्चों को पोषण मिलेगा, स्वास्थ्यवर्धक खाना मिलेगा, बच्चों से कुपोषण दूर होगा, माँ-बाप अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना शुरू कर देंगे, बच्चों की उपस्थिति बढ़ जाएगी, साक्षरता बढ़ जाएगी, सब कुछ सही हो जाएगा लेकिन हुआ उसका उल्टा.

पहले प्राइमरी स्कूलों के प्रधानाचार्य इस कोशिश में रहते थे कि किस प्रकार से बच्चों को अधिक से अधिक ज्ञान दिया जाए ताकि हमारा भी प्रमोशन हो, समाज में मान सम्मान बढे, बच्चे पढ़ लिखकर अपने माँ-बाप और हमारा नाम रोशन करें लेकिन अब ज्यादातर प्रधानाचार्य यह सोचते हैं कि बच्चों को कितना कम खिलाएं, बच्चों के हिस्से में से कितना राशन बचाएं कि हर रोज हमारे घर पर भी 100-50 किलो राशन पहुँच जाय, साथ ही लूट का कुछ हिस्सा स्कूल के अन्य अध्यापकों और कर्मचारियों को बाँट दिया जाय ताकि कोई उनके खिलाफ आवाज ना उठा पाए.

अब आप खुद सोचिये, अगर प्राइमरी स्कूलों के प्रधानाचार्य दिन भर राशन चुराने में लगे रहेंगे तो बच्चों को क्या शिक्षा देंगे, अगर स्कूलों के अध्यापकों का ध्यान अपने हिस्से पर रहेगा तो वे बच्चों को क्या पढाएंगे. इसीलिए प्राइमरी स्कूलों की हालत दिनों दिन दयनीय होती जा रही है, जरूरी नहीं कि यह सब केवल उत्तर प्रदेश में हो रहा है, यह गलत काम भारत के सभी राज्यों में हो रहा है, सरकार को तुरंत ही यह योजना बंद करनी चाहिए और अगर मदद करनी ही है तो कुछ पैसा बच्चों के खाते में भेज देना चाहिए ताकि वे खुद खरीदकर खा सकें.

सरकार बच्चों को भेजती है सब-कुछ, उन्हें मिलती है सिर्फ खिचड़ी

सबसे हैरानी की बात तो ये है कि केंद्र सरकार प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को खाने के लिए सब कुछ भेजती है, उन्हें बढ़िया अनाज भेजा जाता है, बढ़िया क्वालिटी की दाल और चावल भेजा जाता है, सब्जियों और फलों के पैसे भेजे जाते हैं लेकिन इसमें से बहुत कुछ रास्ते में ही लूट लिया जाता है और बचा खुचा स्कूल के टीचर लूट लेते हैं, बच्चों को सिर्फ खिचड़ी खिलाकर घर भेज दिया जाता है. स्कूलों में बहुत बड़ा भ्रष्टाचार हो रहा है, जो खाना बच्चों के लिए भेजा जाता है उसे चोर और भ्रष्टाचारी अधिकारी, प्रधानाचार्य और अध्यापक मिलकर लूट खाते हैं, बच्चों को सिर्फ खिचड़ी मिलती है. सरकार को तुरंत ही इस मामले पर ध्यान देना चाहिए वरना पूरा शिक्षा तंत्र खोखला हो जाएगा और बाद में कुछ नहीं बचेगा.
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