BMC में शिवसेना ने अपनी हार पर मनाई ख़ुशी, फोड़े पटाखे

Shivsena celebrated their defeat in BMC Election 2017
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मुंबई: मुंबई में शिवसेना को भले ही सबसे अधिक सीटें मिली हों लेकिन एक तरह से शिवसेना की हार हुई है क्योंकि इससे पहले 2012 के BMC चुनावों में शिवसेना को 89 सीटें मिली थीं लेकिन 2017 के चुनाव में सिर्फ 84 सीटें मिलीं, मतलब पांच सीटें छिन गयीं और इसे हार ही कहा जाएगा। उदाहरण के लिए अगर आप 100 रुपये किसी चीज में लगाओ और आपको 90 रुपये ही मिलें तो आप उसकी ख़ुशी कभी नहीं मनाओगे, आप ख़ुशी तब मनाओगे जब 100 के 110 मिलें लेकिन यहाँ तो शिवसेना को 89 के बदले 84 सीटें ही मिलीं उसके बाद भी शिवसेना ने ख़ुशी मनाई, मिठाई बांटीं और पटाखे भी फोड़े। 

शिवसेना ने क्यों मनाई अपनी हार की ख़ुशी

शिवसेना ने यह ख़ुशी अनजाने में मनाई क्योंकि शुरुआत में शिवसेना के पक्ष में बहुत तेजी से नतीजे आने शुरू हो गए थे, एक समय जब बीजेपी की केवल 30 सीटें थीं तो शिवसेना 65 पर पहुँच गयी थी, कई शिवसैनिक इसके बाद जोश में आ गए और उन्होंने सोचा कि अब बहुमत आना निश्चित है, कुछ ने तो यह भी कहा कि अब हमें बीजेपी की जरूरत ही नहीं पड़ेगा, छोटे मोटे की बात छोडो, शिवसेना सांसद संजय राउत ने खुद कहा कि उन्हें बीजेपी की जरूरत नहीं पड़ेगी समर्थन देने के लिए और भी पार्टियाँ हैं। 

इसके बाद शिवसैनिकों ने ढोल पीटना शुरू कर दिया, बीजेपी को बुरा भला और घमंडी बोलना शुरू कर दिया, कुछ शिवसैनिक तो बीजेपी को चिढ़ाने के लिए दादर में एक बीजेपी नेता के घर पहुँच गए और उसके घर के बाद ढोल पीटना शुरू कर दिया, वे लोग बीजेपी वालों को चिढ़ाने लगे लेकिन उन्हें पुलिस ने भगा दिया, कई जगह बीजेपी और शिवसैनिकों ने झड़प भी हुई। 

जब शिवसेना 92 पर पहुंची तो बीजेपी की सीटें केवल 65 थे, शिवसेना को लग रहा था कि वह बहुमत के नजदीक पहुँच जाएगी, उन्होने आतिशबाजी शुरू कर दी, मिठाइयाँ बांटनी शुरू कर दी, बधाई सन्देश शुरू हो गए, इसके बाद अचानक अंतिम समय में बीजेपी ने तेज गति से दौड़ लगानी शुरू, बीजेपी की सीटें बढ़ती गयी और शिवसेना की कम होने लगी, देखते ही देखते बीजेपी 82 पर पहुँच गयी और शिवसेना घटकर 84 पर आ गयी। 

शुरुआत में शिवसेना वाले बीजेपी को चिढा रहे थे लेकिन बीजेपी ने ऐसी दौड़ लगाईं कि शिवसेना के करीब पहुँच गयी। फाइनल रिजल्ट में शिवसेना की हार हुई थी क्योंकि 2012 की तुलना में शिवसेना को 5 सीटें कम मिलीं थी वहीँ बीजेपी को 2012 की तुलना में 50 सीटें अधिक मिलीं। 2012 में बीजेपी केवल 32 सीटें जीत पायी थी। 

मतलब शिवसेना ने बहुमत मिलने का सपना देखकर ढोल पीटा, ख़ुशी मनाई, मिठाइयाँ भी बांटी, बीजेपी को चिढाया भी लेकिन अंत में पांच सीटें हार गयी।

इससे राजनीतिक पार्टियों को ये सीख मिलती है कि जब तक फाइनल रिजल्ट ना आ जाए, ना ख़ुशी मनानी चाहिए, ना ढोल पीटने चाहिए और ना ही मिठाई बांटनी चाहिए। ऐसा ही काम बीजेपी ने बिहार में विधानसभा के नतीजे के वक्त किया था, जैसे ही बीजेपी ने अपनी जीत होते देखी पटाखे फोड़ने शुरू कर दिए लेकिन उसके बाद बीजेपी की बुरी तरह से हार हुई थी। 
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