BJP हो, कांग्रेस या अन्य, पार्षद, विधायक, MP के लिए सिर्फ अमीरों को क्यों देते हैं टिकट: पढ़ें

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New Delhi, 11 January: आप कितने भी पढ़े लिखे हों, कितने भी समझदार हों, कितने भी मेहनती हों या कितने भी बड़े इमानदार हों लेकिन जब तक आपके पास करोड़ों रुपये नहीं होंगे आपको बीजेपी, कांग्रेस या अन्य पार्टियों से टिकट नहीं मिल सकता और आज की तारीख में बीजेपी का तो कभी भी टिकट नहीं मिल सकता भले ही कई वर्षों ने पार्टी के साथ काम कर रहे हों। लेकिन अगर आपके पास करोड़ों रुपये हों तो आप 6 महीने पहले बीजेपी ज्वाइन कर लें और आपको पार्षद, विधायक या सांसद का टिकट मिल सकता है भले ही आपने वह पैसा दो नम्बर से कमाया हो, प्रॉपर्टी दलाली का काम करते हों या कमीशनखोरी करते हों। 

वैसे तो यह काम सभी पार्टियों में होता है लेकिन आज की तारीख में बीजेपी में भी 70 फ़ीसदी पार्षद, विधायक और सांसद उम्मीदवारों को केवल पैसा देखकर टिकट दिया जाता है, यह नहीं देखा जाता कि उन्होंने यह पैसा किस तरह से कमाया है, ज्यादातर नेताओं में प्रॉपर्टी डीलर होते हैं जिनके पास सबसे अधिक कालाधन होता है। बीजेपी की मजबूरी यह है कि अगर पैसे वालों को टिकट नहीं देंगे तो वह चुनाव जीत नहीं पाएगा, केवल पार्षद के चुनाव में एक करोड़ रुपये खर्च होते हैं और उम्मीदवार को एक साल पहले से ही चुनाव की तैयारी  शुरू करनी पड़ती है, हर गली पर बैनर, पोस्टर लगाने पड़ते हैं, मीडिया वालों से साठ गाँठ बैठानी पड़ती है ताकि  उनकी ख़बरें छपती रहें, प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ती है, पार्टी देनी पड़ती है, पता नहीं क्या क्या करना पड़ता है। 

विधायक के चुनाव में कम से कम पांच करोड़ खर्च होते हैं और सांसद के उम्मीदवारों को भी उतना ही खर्च करना पड़ता है, पैसा खर्च नहीं करेगा तो वह चुनाव जीत नहीं पाएगा क्योंकि आजकल चुनाव प्रचार में जितना अधिक शोर शराबा किया जाता है उम्मीदवार की उतनी ही अधिक हवा बनती है, जितना बैनर अधिक लगाएगा उतनी अधिक चर्चा होगी। अगर प्रचार कम करेगा तो उसे कमजोर उम्मीदवार समझा जाता है। 

अगर ऐसा ही होता रहा तो इमानदार उम्मीदवारों को कभी टिकट नहीं मिल सकेगा और इमानदार लोग पार्षद, विधायक और सांसद कभी नहीं बन पाएंगे.. 

इस बीमारी का सिर्फ एक इलाज है, चुनाव आयोग को बैनर, पोस्टर, लाउडस्पीकर पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए, इसके बजाय सभी घरों में उम्मीदवारों का बायोडाटा भेजना चाहिए ताकि जनता बायोडाटा देखकर तय कर सके कि किसे वोट देना है और किसे नहीं देना है। अगर ऐसा हुआ तो बैनर, पोस्टर और दर्जनों गाड़ियों में लगने वाले लाउडस्पीकर का खर्च बच जाएगा और इमानदार और पढ़ें लिखे उम्मीदवार भी चुनावों में खड़े होने की हिम्मत जुटा पाएंगे। 

अभी क्या होता है, अगर कांग्रेस वाला एक गली में 10 बैनर लगाएगा तो बीजेपी वाला उसी गली में 20 बैनर लगा देगा, अगर कांग्रेस वाला बीजेपी वाले नेता के बैनर फडवाएगा तो बीजेपी वाला उसका बैनर फड़वा देगा, उसके स्थान पर दूसरा बैनर लगेगा, फिर तीसरा बैनर लगेगा, दरवाजे पर बैनर लगेगा, खिड़की पर भी बैनर लग जाएगा, छत पर भी बैनर लग जाएगा और दीवारों पर भी बैनर लग जाते हैं। अगर कांग्रेस वाला 10 गाड़ियों में लाउडस्पीकर से प्रचार करवाएगा तो बीजेपी वाला 20 गाडियों में लाउडस्पीकर लगवा देगा, अगर कांग्रेस वाला एक गली में लाउडस्पीकर लगी गाड़ियों के एक दिन में पांच चक्कर लगाएगा तो बीजेपी वाला उसी गली में एक दिन में 10 लगवाएगा लगाएगा इसके बाद कांग्रेस वाला फिर से उसी गली में 15 चक्कर लगवाएगा तो बीजेपी वाला उसी गली में 20 चक्कर लगाएगा। जनता का सर दुःख जाता है लेकिन उम्मीदवारों का प्रचार करवाने में पैसा ख़त्म नहीं होता। पता नहीं कहाँ से इतना पैसा आता है। 

यह तो मोदी जैसे नेताओं की किस्मत ही कही जाएगी कि ऐसे लोगों ने मेहनत के दम पर प्रधानमंत्री बन चुके हैं और अब चाहते हैं कि चुनावों में पैसा खर्चा करने की प्रथा बंद हो। उन्हें भी पता है कि अगर यही सिलसिला चलता रहा तो इमानदार आदमी कभी भी राजनीति में नहीं आ पाएंगे और दलाल और बेईमान किस्म के नेता ही नम्बर दो का काम करके पैसा कमाएंगे और पार्षद, विधायक और सांसद पद के उम्मीदवार बनते रहेंगे। 
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