ओम पुरी ने मौत से एक दिन पहले कहा था, मौत का कोई भरोसा नहीं होता साहब, क्या पता मै कल... पढ़ें?

New Delhi, 8 January: ओम पुरी के पिछले दो तीन बयानों को छोड़ दें तो उनकी जिन्दगी काफी दमदार था और वे इंसान भी दमदार थे लेकिन उनके दो तीन विवादित बयानों ने उन्हें हीरो से विलेन बना दिया
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New Delhi, 8 January: ओम पुरी के पिछले दो तीन बयानों को छोड़ दें तो उनकी जिन्दगी काफी दमदार था और वे इंसान भी दमदार थे लेकिन उनके दो तीन विवादित बयानों ने उन्हें हीरो से विलेन बना दिया, उनके चाहने वालों के लिए अभिनय के बादशाह ओम पुरी का यूं चले जाना पसंद नहीं आया क्योंकि अभी उन्हें बहुत अभिनय बाकी था। 

हां, मौत भी वही मिली जिसकी उन्होंने कामना की थी। वो मौत से नहीं, बीमारी से डरते थे। मार्च 2015 में उन्होंने छत्तीसगढ़ में बीबीसी के लिए एक साक्षात्कार में वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल से कहा था, "मृत्यु का भय नहीं होता, बीमारी का भय होता है। जब हम देखते हैं कि लोग लाचार हो जाते हैं, बीमारी की वजह से दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। ऐसी हालत से डर लगता है। मृत्यु से डर नहीं लगता। मृत्यु का तो आपको पता भी नहीं चलेगा। सोए-सोए चल देंगे। (मेरे निधन के बारे में) आपको पता चलेगा कि ओम पुरी का कल सुबह 7 बजकर 22 मिनट पर निधन हो गया।" यह वाकई सच हो गया। 

उन्होंने मृत्यु की पूर्वसंध्या पर अपने बेटे ईशांत को भी फोन किया और कहा कि मिलना चाहते हैं। अफसोस! सुबह हुई कि वो जा चुके थे। घर पर अकेले थे, न किसी सेवक को मौका दिया और न किसी की मदद का इंतजार। बिस्तर पर बेजान शरीर और पीछे बस यादें ही यादें..। 

वो शख्सियत जो अनजानों से भी यूं गले मिले, जैसे कोई अपना अजीज हो। किरदार यूं निभाए कि मानो हकीकत हो। थिएटर से लेकर पर्दे तक बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड, यहां तक कि समानांतर फिल्मों से व्यावसायिक फिल्मों तक में धाकदार अभिनय कर देश-विदेश में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। 

उस महान अभिनेता ओमपुरी का यकायक यूं चले जाना सबको हतप्रभ कर गया। शायद इसलिए भी कि मृत्यु को लेकर उन्होंने जो कहा था, सत्य हो गया! कितना अजीब संयोग था, मानो उन्हें अपनी मौत की खबर थी और जैसी जिंदगी चाही, वैसी जी ली। 

उन्होंने खुद को उस दौर में फिल्मों में स्थापित किया, जब सफलता के लिए सुंदर चेहरों का बोलबाला था। साफ और सीधा कहें तो बदशक्ल सूरत की भी धाक, जिसने मंच से लेकर बड़े और छोटे पर्दे पर जमाकर न जाने कितनों को प्रेरित किया, मौका दिया, जिंदगी बदल दी, कहां से कहां पहुंचा दिया, खुद उनको भी नहीं पता होगा। 

ओम पुरी ने फिल्मी अभिनय की शुरुआत मराठी फिल्म 'घासीराम कोतवाल' से की। विजय तंदुलकर के मराठी नाटक पर बनी इस फिल्म का निर्देशन के. हरिहरन और मनी कौल ने किया था। मजेदार बात यह है कि फिल्म एफटीटीआई के 16 छात्रों के सहयोग से बनी थी और बेहतरीन काम के लिए एक्टर को मूंगफली दी गई।

पद्मश्री सम्मान, बेस्ट एक्टर अवार्ड सहित तमाम पुरस्कारों, सम्मानों से सम्मानित ओम पुरी एक जिंदा दिल और भावुक इंसान थे। उनके चाहने वाले और फिल्म इंडस्ट्री के सहयोगी, मित्र इस शख्सियत को मिले सम्मानों और पुरस्कारों को ऐसी प्रतिभा के लिए नाकाफी मानते हैं।

उनके प्रशंसकों का मानना है कि ओम पुरी सम्मानों से कहीं आगे थे। पाकिस्तान में भी वहां के लोग और फिल्म इंडस्ट्री ओम के चले जाने से आहत हैं, सदमे में हैं। कोई उन्हें लीजेंड बता रहा है तो कोई भारत-पाकिस्तान रिश्तों का सच्चा एम्बेसेडर तो कोई दोनों के लिए शांतिदूत। बहुत-सी फिल्मों में ओमपुरी ने पाकिस्तानी किरदार की भूमिका भी निभाई है।

ओम पुरी अपने आप में एक संपूर्ण अभिनेता थे। उन्होंने हर वो अभिनय किया, जो उन्हें पसंद आया। चरित्र अभिनेता से लेकर खलनायक और कॉमेडियन की भूमिका को भी उन्होंने इस कदर निभाया कि एक दौर वो भी आया कि ये भेद कर पाना भी मुश्किल होने लगा कि उन्हें किस श्रेणी में रखा जाए। 

ओम पुरी ने ब्रिटेन और अमेरिका की फिल्मों में भी बेहतरीन अभिनय किया है। वो अपने अभिनय के हर रोल की बड़ी ईमानदारी और समर्पण से एकदम जीवंत सा जीते थे। चाहे रिचर्ड एटनबरो की चर्चित फिल्म 'गांधी' में छोटी सी भूमिका हो या 'अर्धसत्य' में पुलिस इंस्पेक्टर का दमदार किरदार रहा हो। टेलीविजन की दुनिया में भी वो हमेशा दमदार अभिनय में नजर आए, चाहे 'भारत एक खोज', 'यात्रा', 'मिस्टर योगी', 'कक्काजी कहिन', 'सी हॉक्स' रहा हो या 'तमस' और 'आहट'। उनकी काबिलियत का सभी ने लोहा माना। 

कलात्मक फिल्मों में भी उनका कोई सानी नहीं रहा। उन्होंने 300 फिल्मों में काम किया, जिनमें कई बेहद सफल और चर्चित रहीं। 'अर्धसत्य', 'आक्रोश', 'माचिस', 'चाची 420', 'जाने भी दो यारों', 'मकबूल', 'नरसिम्हा', 'घायल', 'बिल्लू', 'चोर मचाए शोर', 'मालामाल' और 'जंगल बुक' में भला ओम पुरी का किरदार किसे याद न होगा। सनी देओल की 'घायल रिटर्न्‍स' उनकी आखिरी फिल्म थी।

यह भी सच है कि इस बेहद सजग और संजीदा कलाकार की निजी जिंदगी बेहद खामोश थी। 1993 में विवाह नंदिता से हुआ था, लेकिन 2013 में तलाक हो गया। उनका एक बेटा ईशान है। निश्चित रूप से अभिनय के हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाले ओम पुरी ने जो भी काम किया, बेहद ईमानदारी से और यही संदेश भी दिया। 

भले ही वो आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के समर्थन का मौका हो या सरहद पर दिए बयान के बाद माफी मांगना हो या फिर भारत-पाकिस्तान के 95 प्रतिशत लोगों को धर्मनिरपेक्ष कहना, आमिर खान की पत्नी के देश छोड़ने की बात पर लताड़ हो, बीफ मसले पर लाखों डॉलर कमाने और पाखंड से जोड़ने की बात हो, 'नक्सलियों का फाइटर' कहने जैसी बातें, यहसब एक दमदार और काबिल इंसान ही कह सकता है। 

ऐसी शख्सियत को भूल पाना नामुमकिन है। सभी किरदारों को एकसाथ देखना, समझना, सीखना और स्वीकारना ही ओम पुरी को असली श्रद्धांजलि होगी।
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