हवाला कारोबारी का पर्दाफाश करने वाले पुलिस अफसर का ट्रान्सफर करके शिवराज ने मोल ले ली मुसीबत

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भोपाल, 12 जनवरी: मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार अपने को जनता का हमदर्द बताते का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देती। मगर यह भी उतना ही सच है कि उसे जनहितैषी अफसर रास नहीं आते हैं, तभी तो ऐसे अफसरों पर सरकार की गाज गिरती है और नाइंसाफी के खिलाफ लोगों को बार-बार सड़कों पर उतरना पड़ता है। शिवराज सिंह पिछले 12 वर्षों से मध्य प्रदेश को विकास के रास्ते पर दावा कर रहे हैं लेकिन ईमानदार और जनता के लिए काम करने वाले अफसरों का ट्रान्सफर करके अपना दामन पर दाग भी लगा रहे हैं। 

ताजा मामला कटनी के पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी के तबादले का है। उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने 500 करोड़ रुपये के हवाला कारोबार का खुलासा किया और उसकी आंच सत्ता से जुड़े एक व्यक्ति पर आने लगी थी। सरकार ने आनन-फानन में तिवारी का तबादला कटनी से छिंदवाड़ा कर दिया। 

तिवारी के तबादले से कटनी की जनता भड़क उठी। लोग सड़कों पर उतर आए, रैलियां निकलीं, बाजार बंद रहे और सरकार पर भी जमकर हमला बोले। हर जुबां से सिर्फ एक ही आवाज निकली और सरकार से पूछा कि 'जो पुलिस अफसर समाज के लिए काम कर रहा था, जिसकी तैनाती के बाद से अपराधियों पर अंकुश लगा था, महिलाएं व युवतियां सुरक्षित महसूस करती थीं, उसका महज छह माह के भीतर ही तबादला क्यों किया गया?' 

राज्य की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच कहती हैं, "सरकार को इतनी जल्दी तबादला नहीं करना चाहिए, यह बात सही है कि कई बार प्रशासन को दबाव में काम करना होता है, हो सकता है कि वह अफसर किसी के लिए रोड़ा बन रहा हो और दबाव के चलते सरकार को उसका तबादला करना पड़ा हो, मगर तिवारी के तबादले से संदेश तो यही जा रहा है कि सरकार की नीयत सही नहीं है।"

राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने कटनी पुलिस अधीक्षक तिवारी के तबादले को 'सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया' करार दिया है। इस पर पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय वाते कहते हैं, "तबादलों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश है कि दो साल से पहले तबादले न किए जाएं और किए जाएं तो कारण बताया जाए। तिवारी के तबादला आदेश के साथ कारण भी बताया जाना चाहिए। अगर इसी तरह प्रशासनिक प्रक्रिया बताकर छह-छह माह में तबादले होते रहे तो प्रशासन व शासन का तो भगवान ही मालिक है।"

तिवारी इकलौते ऐसे अधिकारी नहीं हैं, जो नियम-सम्मत काम कर रहे थे, और उससे कुछ लोग प्रभावित हुए तो उनका तबादला किया गया। इससे पहले बीते साल शाजापुर के तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव शर्मा को सिर्फ इसलिए हटाया गया, क्योंकि उन्होंने जनहित की कई योजनाएं शुरू कर दी थीं, जिसके चलते क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के दरवाजे पर लगने वाली भीड़ कम हो गई थी।

शर्मा ने शाजापुर में रहते हुए शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए खास कदम उठाए। इतना ही नहीं, आमजन को होने वाली समस्या को फेसबुक में दर्ज कराने का अभियान चलाया, जिसमें यह व्यवस्था थी कि शिकायत आते ही उस पर बगैर समय गंवाए निराकरण के प्रयास किए जाएं। इसका नतीजा यह हुआ कि लोग जिलाधिकारी व अन्य अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगाने की बजाय फेसबुक से शिकायत दर्ज कराने लगे। इससे जहां समस्या का जल्द से जल्द निराकरण हुआ, वहीं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा। 

प्रशासन की जनता को बेहतर सुविधा देने की पहल से क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों को लगा कि उनकी अहमियत घटने लगी है, क्योंकि जिस काम के लिए आमजन को उनके दरबार में आना चाहिए, उसके लिए वे फेसबुक का सहारा ले रहे हैं। बदलते हालात से परेशान नेताओं ने सरकार पर दबाव बनाकर शर्मा का तबादला करा दिया। शर्मा के तबादले के विरोध में जनता भी सड़कों पर उतरी, कई दिन प्रदर्शन चले।

इसी तरह नरसिंहपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी सी.बी. चक्रवर्ती का तबादला भी इसलिए किया गया, क्योंकि वे जनता के हिमायती बन गए थे। उनके तबादले के विरोध में भी सड़कों पर लेाग उतरे थे। नीमच में जिलाधिकारी रहे नंद कुमारम् का भी तबादला इसलिए किया गया, क्योंकि उन्होंने अंतर्राज्यीय बैरियर पर अवैध परिवहन पर रोक लगा दी थी। 

इन चार अफसरों के तबादलों ने सरकार की छवि पर आंच आई है। लोगों में संदेश यही गया है कि 'सरकार को नियम और कानून के मुताबिक जनता के लिए काम करने वाले अफसर पसंद नहीं है।'

इतना ही नहीं, जनता ने सड़कों पर उतरकर तबादलों का विरोध किया और सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं। अब देखना है कि सुशासन का दावा करने वाली सरकार जनता के बीच जा रहे नकारात्मक संदेश से अपनी 'फेस सेविंग' कैसे करती है। 
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