पोल खुल रही है इसलिए बैंकों के कुछ अधिकारियों को पसंद नहीं है मोदी सरकार का RBI में दखल

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New Delhi, 14 January: आपने देखा होगा कि नोटबंदी के बाद यह भी पता चल गया कि बैंकों के कुछ अधिकारी, लाखों मैनेजर और हजारों लाखों कर्मचारी कितने भ्रष्ट हैं, जब भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है तो लोग बैंकों को चोर तो समझेंगे ही, अगर नोटबंदी ना हुई होती तो ये चोर अधिकारी बैंकों में ही बैठे रहते और देश को लूटते रहते। मोदी सरकार ने नोटबंदी के बाद बैंकों में भ्रष्टाचार का छेद बंद करने का काम किया है लेकिन कुछ बैंक अधिकारियों को RBI और केंद्रीय बैंकों के कामकाज में मोदी सरकार का दखल पसंद नहीं आ रहा है और ये लोग खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं।

इसलिए इन लोगों ने RBI गवर्नर उर्जित पटेल को चिट्ठी लिखकर कहा है कि नोटबंदी के बाद पैदा हुई स्थिति से वे खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं और यह चोट इतनी गहरी है कि इसकी भरपाई नहीं की जा सकती। 

ये अधिकारी चाहते हैं कि RBI में मोदी सरकार का दखल बंद हो और इनके काले कारनामे चलते रहें इसलिए इन्होने लिखा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया के दौरान कुप्रबंधन और केंद्र सरकार द्वारा करेंसी संयोजन के लिए अधिकारी की नियुक्ति करके RBI की स्वायत्तता को चोट पहुंचाने की कोशिश की गयी है। अब आप बताइये, सवाल तो लोग मोदी सरकार से ही पूछते हैं और दोष भी मोदी सरकार को देते हैं, ऐसे में RBI की देख रेख के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति करना क्या गलत है। 

चिट्ठी में लिखा गया है कि नोटबंदी के दौरान कुप्रबंधन से RBI की स्वायत्तता को नुकसान पहुंचा है, केंद्र सरकार द्वारा अधिकारी की नियुक्ति RBI में अतिक्रमण है। 

यह पत्र यूनाइटेड फोरम ऑफ रिजर्व बैंक ऑफिसर्स एंड इम्पलाइज की तरफ से दिया गया है, इस संगठन में केंद्रीय बैंकों के 18 हजार कर्मचारी शामिल हैं। 

इन कर्मचारियों को शायद पता नहीं है कि RBI भी सरकार के ही अंतर्गत आती है और अपने सस्थाओं की मोनिटरिंग करना सरकार की जिम्मेदारी है क्योंकि सरकार को जनता ने चुना है और जनता ही इस देश की मालिक है। 

इस चिट्ठी में ऑल इंडिया रिजर्व बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन के समीर घोष, ऑल इंडिया रिजर्व बैंक वर्कर्स फेडरेशन के सूर्यकांत महादिक, ऑल इंडिया रिजर्व बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के सीएम पॉलसिल और आरबीआई ऑफिसर्स एसोसिएशन के आरएन वत्स के हस्ताक्षर हैं। 
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